घर का भेदी लंका ढाये ।
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घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
लंकाधिपति बन गया विभीषण
अपयश बोझ शीश उठाये ।
नाम हुआ बदनाम यहाँ तक
नाम विभीषण कोई ना रखवाये ।।
घर का भेदी लंका ढाये
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
पृथ्वीराज से छल करके
दुश्मन गौरी से जा मिलके ।
द्रोही जयचन्द बना गद्दार
गर्दन गिरा उसका भी कट के ।
जान गया पर राज ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
मातृभूमि से जो छल करता
वह कुत्ते की मौत ही मरता ।
इतिहास भरा है पढ़कर देखो
विष बेल कभी ना फलता फूलता ।
गीदड़ कभी ना सिंह को खाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
जो ईमान को बेंचा करता
उसका पेट कभी ना भरता ।
श्रापित अश्वस्थामा होकर
मारा मारा फिरता रहता ।
मिलता घाव जो भर ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
सुनो! जयचंदों शर्म करो
पाप घड़ा ऐसा ना भरो ।
जिस पत्तल में भोजन करते हो
उसमे ही ना छेद करो ।
तेरी मति किसने भरमाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
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घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
लंकाधिपति बन गया विभीषण
अपयश बोझ शीश उठाये ।
नाम हुआ बदनाम यहाँ तक
नाम विभीषण कोई ना रखवाये ।।
घर का भेदी लंका ढाये
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
पृथ्वीराज से छल करके
दुश्मन गौरी से जा मिलके ।
द्रोही जयचन्द बना गद्दार
गर्दन गिरा उसका भी कट के ।
जान गया पर राज ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
मातृभूमि से जो छल करता
वह कुत्ते की मौत ही मरता ।
इतिहास भरा है पढ़कर देखो
विष बेल कभी ना फलता फूलता ।
गीदड़ कभी ना सिंह को खाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
जो ईमान को बेंचा करता
उसका पेट कभी ना भरता ।
श्रापित अश्वस्थामा होकर
मारा मारा फिरता रहता ।
मिलता घाव जो भर ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
सुनो! जयचंदों शर्म करो
पाप घड़ा ऐसा ना भरो ।
जिस पत्तल में भोजन करते हो
उसमे ही ना छेद करो ।
तेरी मति किसने भरमाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
रचनाकार(विनीत)----चोवा राम वर्मा "बादल"
हथबंद 9926195747
दिनाँक 12-11--2016
हथबंद 9926195747
दिनाँक 12-11--2016
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