शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//2//दिलीप पटेल

घर का भेदी लंका ढाये"
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पराक्रमी भी जीत न पाया
तु काहे को रार मचाये
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
बाली जैसा बलशाली
क्यू चूक गयी थी प्रभू की चाली
डाल गले मे पुष्पो की माला पिछे से वार करवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
रावण जैसा महाग्यानी
सौ योजन चक्र समुद्र की पानी
देखी तरूवर वृंदा की आंगन हनुमत विभिषण से बतियाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये....
लाक्छा गृह मारने पांडवों को
शकुनी ने बोला कवरवों को
भनक लगी जब विदूर को , तो सुरंग ऊन्हो ने बनवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये,
अर्जून था निपुर्ण धनूर्विद्या में
एकलव्य भी उतनी स्वयं शिक्छा में
वचन निभाने गुरू द्रोण क्यू , एकलव्य से उंगली कटवाये
नियती नही ये तो छल है , जब घर का भेदी लंका ढाये.....
आज भी देखो घर घर में कलयुग के इस प्रमाण को
मातु - पिता को भूल के बच्चे पूज रहे पाषाण को
घर वालो से मिल कर पडोसी घर वालो को ही लडवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
परक्रमी भी जीत न पाया
तु काहे को रार मचाये
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो. नं. 8120879287

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