बुधवार, 16 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//8//आशा देशमुख

..घर का भेदी लंका ढाए
अमर वाक्य हर युग में छाए
घर का भेदी लंका ढाए |
स्वारथ जब परवान चढे तब
रिश्ते नाते हैं बेमानी
लोभ घृणा तम दोष मढ़े पर
हर तृष्णा की एक कहानी |
ठूँठ बना दीं नेह टहनियाँ
छल नेअमरित कुंड सुखाए|
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए |
मर्यादा जब जब रोई है
समझो तब तब द्वंद्व उगा है |
मूक बधिर अंधों की नगरी ,
किसको माने कौन सगा है |
पल में सृष्टि बदलने वाले
महासमर को रोक न पाए |
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए|
पृथ्वी का सीना छलनी है
जयचंदों के ही तीरों से ,
सत्य रखे आधार शिला तो
स्तम्भ बनाते शूरवीरों से |
सत्ता की मोहक मूरत से
लालच मद ने होश गवाए |
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए |
**************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
13 .11.2016 रविवार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें