मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

साहित्यश्री-7//4//चोवा राम "बादल"

विधा---*रोला छंद*
----------------------------------------------------
1
मिटे आतंकवाद ,शांति का ध्वज लहराये ।
निर्दोषों का खून, बहे ना जन घबराये ।
आते सीमा लाँघ, यहाँ आतंकी पाकी।
उनके घर जा मार, भरेंगे ऋण जो बाकी ।
2
बैठे जो जयचंद,देश के भीतर छुपकर ।
देते हैं संताप, खार सा हरदम चुभकर ।
जब तक हैं वो शेष, करेंगे नित बर्बादी।
कंटक हो अब दूर, घटे कुछ तो आबादी।
3
हो गया बहुत पाठ, भूमिका सेना को दो।
उनके दोनों हाथ, खोल रण लड़ने तो दो ।
गरजेगा जब पाक, साफ़ वो हो जायेगा ।
हर्षित होगा विश्व, धरा में सुख छायेगा ।
------------------------------------------------
निवेदक-----चोवा राम "बादल"
हथबंद 26-12-2016

साहित्यश्री-7//3//एस•एन•बी•"साहब"

विषय - "आतंकवाद को खत्म करें"
निर्णायक समिति को सादर प्रणाम
माथे पर कलंक लिए,
लिए तुम फिरते हो ।
माँ भारती से सामना,
करने से तुम डरते हो ।
चेहरा छुपा के तुम,
कत्लेआम करवाते हो ।
जिहाद के नाम पर,
आतंकवादी कहलाते हो ।
सीने में दहकती है चिंगारी,
हर हिन्दुस्तानी के ।
हवा का रूख जो बदला,
फूट पड़ेगी लौ जवानी के ।
मिटा देंगे जड़ से तुझे,
क्यों इन्हें उकसाते हो ?••••
वीर-जवान-शहीदों की गाथा,
तन-मन में रमता जाता है ।
अन्याय के विरुद्ध है लड़ना,
जवान यह गीत गाता जाता है ।
यहाँ हर हृदय में देशभक्ति देख,
तुम क्यों अकुलाते हो ?•••••
निर्दोषों का खून बहाकर,
तुम ताकतवर कहलाते हो ।
सामना जब होती है हमसे,
पीठ दिखाकर भाग जाते हो ।
तेरी क्या औकात है,
क्यों हमें समझाते हो ?•••••
मेरी सेना धूल चटाकर,
सरहद पार करा देगी ।
सिर छुपाने जगह न मिलेगी,
खाक में मिला के रख देगी ।
नफरत का बीज बोकर,
आतंकवादी उपजाते हो ।••••••
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,
आपस में सब भाई-भाई ।
अपना मकसद पूरा करने,
मासूमों के सीने में तुमने आग लगाई।
मजहब का नाम देकर,
तुम आपस में लडवाते हो ।•••••
----श्री एस•एन•बी•"साहब"
रायगढ़
छत्तीसगढ़

साहित्यश्री-7//2//राजेश कुमार निषाद

आतंकवाद का खात्मा
देखा था आप सब ने कैसा था मुम्बई का हाल।
जनता थी वहाँ की बेबस मची थी बवाल।
कहाँ से आये थे ये आतंकवादी कर रहे थे अपना राज।
घुस गये थे होटल के अंदर उड़ा दिये थे होटल ताज।
सुख चैन छीन गया था उदास हो गये थे मुम्बई वासी।
जिस पर भरोसा किया वही निकला था अविश्वासी।
कही पर बम फट रहे थे कही पर हो रही थी गोलाबारी।
उस दिन मुम्बई वासी मरे एक दिन आयेगी हमारी बारी।
इन आतंकियों को दूर भगाने आये थे वतन के नवजवान।
कितने आतंकियों को मार गिराया और खुद हो गये कुर्बान।
कई ऐसे बेटे थे जिनका था सिर्फ माँ और बाप।
जो था अपने माँ बाप का भविष्य का आस।
ऐसे घटना फिर कभी हमें न आये याद।
प्रण करते है मिटाकर रख देंगे आतंकवाद।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

साहित्यश्री-7//1//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

आतंकवाद का खात्मा
----------------------------------
बिलख रही है,
माँ भारती की आत्मा।
जल्द हो,
आतंकवाद का खात्मा।
उठ रही है धुंवा,
गोला-बारूद की।
लगा रही है जिंदगी,
मौत के सागर में डुबकी।
हो रहे है खंडहर,
कई घर रोज।
जननी दारा रो रही है,
छाती पीट हर रोज।
जल जाये पतंगो की तरह,
जला ऐसा समा...........|
कब तक तिरंगे में,
खून के छीटें पड़ेंगे?
कब हम ऐसे शत्रु के,
हाथ धोकर पीछे पड़ेंगे?
कब मिटेगा इस मुल्क से,
आतंकवाद का नामोनिसान?
आखिर कब तक,मिट्टी भारत की,
होगी लहू लुहान?
करनी होगी हम सबको
जात-पात,उँच-नीच,
और आतंकवाद से रक्षा।
बिलख रही है,
माँ भारती की आत्मा।
जल्द हो,
आतंकवाद का खात्मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

//साहित्य श्री 6 का परिणाम//

साहित्य श्री 6 जिसका विषय -‘नोट का चोट‘ था ।  जिस पर 10 रचनायें प्राप्त हुई । सभी रचनाकारों को इस आयोजन में सम्मिलित होने के लिये आभार आपके सद्प्रयास के लिये बधाई । इस आयोजन का परिणाम निम्नासार घोषित किया जाता है -

प्रथम विजेता- श्री एस एन बी साहब
द्वितीय विजेता- श्री आचार्य तोषण धनगांव
तृतीय विजेता-श्री गुमान प्रसाद साहू

सभी विजेता मित्रों को हार्दिक बधाई

//साहित्य श्री 5 का परिणाम//

सबसे पहले परिणाम विलंब से घोषित करने के लिये क्षमा चाहता हूॅ । दरअसल निर्णायक महोदय के व्यस्तता के कारण परिणाम में विलंब हो गया । साहित्य श्री 5 जिसका विषय -‘ घर का भेदी लंका ढाये‘ था ।  जिस पर बहुत कम रचना प्राप्त हुआ केवल 5 ।  इन रचनाओं प्रथम स्थान श्रीमती आशा देशमुख को घोषित किया जाता है ।

विजेता को कोटिश बधाई

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

साहित्यश्री-6//10//देवेन्द्र कुमार ध्रुव(

विषय -नोट का चोट....
जब से बड़े नोटों का चलन बंद हो गया,
बड़े लोगो का सारा महकमा दंग हो गया,
मंजर बदला सबका बदला ढंग हो गया,
लगा नोट का चोट अमीरों की खुमारी पे...
अर्थव्यवस्था में सुधार,सोच सभी तकलीफे सह रहे हैं,
यही है देश के विकास का आधार सभी कह रहे हैं,
अभी बहुत से काम रुक गये है नोटबंदी से
दिखा नोट का चोट हर काम और दुनियादारी पे....
आज लाचार बैठे है,बड़े बड़े धन्ना सेठ,
कमाने वाले रुपया,गरीब लोगो से ऐंठ,
सन्न है,जमा पूंजी को कागज होते देख,
नोट का चोट पैसो से भरी अलमारी पे...
कहाँ से आये है पैसे कभी नही बताते थे,
क्या क्या जतन कर पैसो को छुपाते थे,
सारा रुपया दबाके,कर नही चुकाते थे,
अब नोट का चोट कर की चोरी चकारी पे....
बन्द होगी जमाखोरी गलत तरीके का कारोबार,
बन्द होगा नकली नोटों का फलता फुलता व्यापार,
लगेगी लगाम अब तो कालाबाजारी पे
नोट का चोट हर दोगले व्यापारी पे...
अपनों का गला काटने वाली हर कटारी पे,
हर काम में लेनदेन पैसों की हिस्सेदारी पे,
चन्द रुपयों के लिये ईमान बेचने वालो पे,
नोट का चोट,देश से होने वाली गद्दारी पे....
चाहे बड़ा आदमी हो या बड़ा नेता हो,
काम के बहाने जो भी रिश्वत लेता हो,
भ्रष्ट तंत्र का मिटेगा अब तो मायाजाल
नोट का चोट, अब तो हर भ्रष्टाचारी पे....
सारी गतिविधियां देश द्रोह की,
बातें अपने स्वार्थ अपने मोह की,
मिट्टी में दबा पैसा मिट्टी हो जायेगा,
नोट का चोट, आतंकवाद और नक्सलवाद की बीमारी पे...
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव(डी आर)
बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

साहित्यश्री-6//9//श्री एस एन बी साहब

विषय-‘‘नोट का चोट‘‘
विधा-विधा रहित,,
नोट की चोट , के लिए एक प्रयास
---------'''''----------""-----------
कब से निशाने पे था
तीर तरकश से छूट गया
छलकने लगे
बरसने लगे
पाप का घडा
शायद! फूट गया
कह कहे हैं कहीं
कहीं मातम का दौर
नोट का चोंट ऐसे पड़ा
खिसक गया सिरमौर
हिसाब-किताब
भूलने लगे
कुछ न बन सका
तो मंडप में लड़ने लगे
जनता बेहाल
सरकार दे
ताल पे ताल
नाच ले प्यारे
कालिख छिपाने
रंग चढेगा धवल
उल्टी गंगा
बही है जब-जब
संतुलन
डगमगाया है तब-तब
दो-चार दिन की
तबाही आई है
ऐसे में ही तो
धरा मुस्कुराई है
सिर्फ चंद सिक्कों से
जिंदगी नहीं चलती
सिर्फ दो-चार दिन में
जिंदगी थम नहीं जाती
नोट का चोंट
जिंदगी जीने का
सलीका सिखाया है
प्यारे!नियम तो बना दिए
परिवर्तन प्रकृति का है नियम
जो न हिले वज्रघात से
क्या? अंदर इतना है संयम
कुछ भी हो
कुछ को हंसा गई
कुछ को रूला गई
नोट का चोंट निशाने पे है
सरकार की नजर खजाने पे है
नकली नोट पे असली चोंट
महज कागज का टुकड़ा बनाने पे है
अंत में कुछ अलग कहता हूँ
नोट का चोंट कब तक असर करेगा
हो मन में खोट फिर तिजोरी भरेगा
--श्री एस एन बी साहब

साहित्यश्री-6//8//दिलीप पटेल बहतरा

नोट की चोट
"""""""""""""/""""""/""""""/""""""""""""""""""
दो नम्बरीयों को लाले पड गये सी गई सबकी होंट
दुम दबाकर बैठ गये है , जबसे बंद हो गई है नोट
बहुत हो गई थी भ्रष्टाचार
खतम होने को थी सदाचार
खूब दौडाया रेगीस्तां में ऊंटें,अब फस चुकी नैया मझधार,
कैसे पार लगेगी नैया जब मन मे भरी हो खोंट ही खोंट ......
दूम दबाकर बैठ गये है जब से बंद हो गई है नोट !
ईन्ही के दम पर ताकतें बढाई
सत्तासीन हो कुर्सी हथीयाई
सेज़ बहारो की पर सोते थे,
देखलो आज नही मिल रही है चार पाई
नींद भी कैसे आये इनको जब चादर हो गई हो छोट........
दूम दबाकर बैठ गये है जबसे बंद हो गई है नोट !
गरीबों की क्या जाने वाला
रुखा सूखा खाने वाला
जिसने गडा कर रखी हुई है,
छट पटा रहा है काला धन वाला
दात देता हू मै सरकार को कि हृदय मे कालाधनीयों की किये गम्भीर चोंट.......
दूम दबाकर बैठ गये है जबसे बंद हो गई है नोट !
सब कुछ दांव पर लग जायेगी
आगे जब जब चुनाव आयेगी
निस्वार्थ,बिना प्रलोभन के जनता जब किसी को चुन पायेगी,
लोक तंत्र मजबूत होगी जब सार्थक होगी हमारी वोट......
दूम दबाकर बैठ गये है जब से बंद हो गई है नोट !
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो नं. 8120879287

साहित्यश्री-6//7//सुनिल शर्मा"नील"

नोटबंदी अभियान
********************************
खेलते थे आजतक जो देश के 
सम्मान से
हाथ कीचड़ से सने सजते धवल
परिधान से
देख तड़पन आज उनकी अवनि
को राहत मिली
मुस्कुराई ""भारती""मोदी के इस
अभियान से |
********************************
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ. ग.)
7828927284

साहित्यश्री-6//6//आचार्य तोषण धनगांव

चुनकर मुखिया आ जाते, लोकतंत्र में वोट से।
देखो पड़ा हुआ आहत, जो नोट की चोट से।।
छिपा रखा जो कलाधन, आज वही बोल रहा।
जो कभी थे छुपे रूस्तम, राज यहाँ खोल रहा।।
देखो छिड़ गया अभियान, ना रूकेगा अब कभी।
एक हो तब विकास सबका, होगा खुशहाल सभी।।
कमीशन से रुपया गढ़े, जेब भरे जो लूट के।
हालत देखो अब उनकी, गिर गये पत्ते सूख के।।
नोट से ही काम बनता, बि_गाड़ता काम यही।
कहता "तोषण" घुंस न लेना, मा_नवता होगा वही।।
© ®
आचार्य तोषण धनगांव

साहित्यश्री-6//5//नवीन कुमार तिवारी

विधा-विधा रहित,,
नोट की चोट , के लिए एक प्रयास 
शुभ प्रभात
लगे न किसी को नोट की चोट ,
देखो केसे निकल रहा ,
या गरीबो की इज्जत से खेल रहा,
कतार में फटी लंगोटी धारी दिख रहा
बस कुछ अदद नोट लिए ,
लोगो की तीखी नजरो से छिपाए हुए
इधर उधर कसमसाये हुए
अधमरा सा सताए हुए
नोट बंदी के खेल में ,
कुछ तो सुनहरा चल रहा ,
अरे जो दस का मारा पेट्रोल,,
उस पर बाजी लगा दिए ,,
जो दस लुटे उस पर भरोसा कर लिए ,,
मतलब ,,,चोर चोर मोसेरे जी ,
सदन में देखो कुत्ते बिल्ली की लढाई जी ,
ये करवा रहे विवाह जी ,
मात्र ढाई की दे रहे सौगात जी ,
क्या ढाई में जलता अगर बत्ती जी
दहेज़ भूलो, खिलावोगे क्या घास फुंस जी ,
जिनके किये वारे न्यारे ,
क्या वे लगे कतार में जी
नाहक अन्नदाता को भी किये परेशांन ही जी
निकालना चाहा आपने
निकलना चाहा आपने
वो कालाधन ही जी
पर देखो निकल रहा ,
सिर्फ गरीबोका , मध्यमो का असुरक्षित धन जी ,
समय असमय के लिए,
जो किया था संचय जी
फटी लंगोटी में भी छिपाया था,
क्या वो काला धन जी,
सोचा था ,जिनसे छिपाया था
क्या कहेंगे वे चार लोग जी
अरे अरे इसके पास बस इतना ही जी ,

नवीन कुमार तिवारी ,, २३.११.२०१६
एल आई जी १४ /२ नेहरू नगर दुर्ग
४९००२० .....मो न . ९४७९२२७२१३

साहित्यश्री-6//4// गुमान प्रसाद साहू

विषय - नोट के चोट
विधा- हरिगितीका छंद में प्रयास----------------------------------
पाँच सौ हजार पर रोक जब,
लगाया सरकार है।
नोट के चोट सभी खा रहे,
थम गया बाजार है।।
नोट बदली करने को सभी,
लोग खड़े कतार में।
रोज चक्कर लोग लगा रहे,
बैंकों के द्वार में।। 1।।
सरकार ने नोटबंदी का,
दिया जब फरमान है।
भ्रष्टाचारी जमाखोर का,
लुट गया अरमान है।।
नोट के चोट ने उनपे भी,
किया डर का वार है।
पाँच सौ,हजार पर रोक जब,
लगाया सरकार है।।2।।
भरे बैठे थे जो घरों में,
नोटो के अम्बार है।
कर रहे थे कालेधनों के,
लोग जो व्यापार है।।
आज नोट को वो बहा रहे,
जा नदी के धार है।
पाँच सौ,हजार पर रोक जब,
लगाया सरकार है।।3।।
छूपा बैठे थे कालाधन,
लोग जो इस देश के।
जमा कर रखें थे खातो में,
बैंकों में विदेश के।।
मच रहे अब उनके दिलों में,
आज हाहाकार है।
पाँच सौ ,हजार पर रोक जब,
लगाया सरकार है।।4।।
रचना :- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम-समोदा(महानदी)
मो. :- 9977313968
जिला-रायपुर छ.ग.

साहित्यश्री-6//3//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

विषय:-- //नोट का चोट//
कालाधन 
कराह रहा,
पड़ा नोट का चोट।
जनता का विश्वास जीत जो,उस से छल करते है।
जनता के ही धन मन पर फिर,भ्रष्ट नियत रखते है।
आज
उजागर हो रहा,
भ्रष्ट नियत का खोट।
जमाखोर हैं असमंजस मे,हांथ पांव फूला है।
आंख रगड़ रहा भ्रष्टाचार,शायद आंख खुला है।
आज
जुगत मे जुट गये,
सफेद करने नोट।
जाली नोट जाल फैला था,थम जायेगा धंदा।
आतंकवाद भुखा मरेगा,बंद पड़ेगा चंदा।
नोटबेन
से हो गया,
कूड़ा जाली नोट।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा

साहित्यश्री-6//2//जीतेन्द्र वर्मा

नोट का चोट
------------------------
खजाने का नोट।
दे गया चोट।
पल में धूल गए,
कई स्वप्न;कई सोच।
नोट का चोट,
उसको लगा गहरा।
बड़े - बड़े नोटों का,
जमाखोर जो ठहरा।
जो खेल रहे थे,
नकली नोटों से ।
घायल है आज,
नोटबंदी के चोटों से।
किसी की कमर टूटी,
किसी को आया मोच।
खजाने का नोट।
दे गया चोट।
पल में धूल गए,
कई स्वप्न; कई सोच।
जिसका लेनदेन खरा था,
वो खुश है।
छुपाकर तिजोरी भरा था,
उसे दुख है।
क्या चोट उसे,
जिसकी जिंदगी ही चोट है।
हाथो में निवाला हो बहुत है,
उनके जेबों में कहाँ नोट है।
पर लग गए ठिकाने,
बड़े-बड़ो का होश।
खजाने का नोट।
दे गया चोट।
पल में धूल गए,
कई स्वप्न;कई सोच।
निजात पाएंगे,जमाखोरी,टैक्सचोरी,
भ्रस्टाचारी और आतंकवाद से।
दिखेगा बैंको में , लेनदेन आज से।
पता चलेगा ;कि कौन?
कितना रकम रखा है।
नोट बंदी कर सरकार ने,
मुद्रा को कसा है।
साथ देना उचित है,
अनुचित है;देना दोष।
खजाने का नोट।
दे गया चोट।
पल में धूल गए,
कई स्वप्न; कई सोच।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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साहित्यश्री-6//1//दिलीप वर्मा

विधा हाइकु ।
नोट का चोट 
उतरा है लंगोट
बिना सपोट।
मोदी के चाल
किया है बुरा हॉल
मचा बवाल।
नोट है बन्द
बाजार हुवा तंग
विपक्षी दंग।
देश है साथ
लिए हाथ में हाथ
नेता अनाथ।
लम्बी कतार
संग है सरकार
पप्पू बेकार।
पप्पू है फेल
नोट का देख खेल
बोल बे मेल।
माया ममता
कांग्रेस या समता
देखो जनता।
बात तू मान
केजरी परेसान
मोदी महान।
छिड़ी है जंग
जनता देख दंग
नेता के रंग।
गरीब खुश
कुबेर परेसान
नेता हैरान।
अर्जुन एक
कौरव है अनेक
निशाना चेक।
मोदी के मन
निकला काला धन
कुबेर सन्न।
तीर है एक
निशाने पर अनेक
है बिना टेक।
दिलीप खुश
फैसला है अचूक
जनता लूक। 

-दिलीप वर्मा

बुधवार, 16 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//9//-सुनिल शर्मा, खम्हरिया

आजतक खेला किए,जो राष्ट्र के सम्मान से जो सदा कुतरा किए ,माँ की चुनर जीजान से देख तड़पन आज उनकी,है मुझे राहत मिली मुस्कुराई भारती मोदी के इस अभियान से
-सुनिल शर्मा, खम्हरिया

साहित्यश्री-5//8//आशा देशमुख

..घर का भेदी लंका ढाए
अमर वाक्य हर युग में छाए
घर का भेदी लंका ढाए |
स्वारथ जब परवान चढे तब
रिश्ते नाते हैं बेमानी
लोभ घृणा तम दोष मढ़े पर
हर तृष्णा की एक कहानी |
ठूँठ बना दीं नेह टहनियाँ
छल नेअमरित कुंड सुखाए|
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए |
मर्यादा जब जब रोई है
समझो तब तब द्वंद्व उगा है |
मूक बधिर अंधों की नगरी ,
किसको माने कौन सगा है |
पल में सृष्टि बदलने वाले
महासमर को रोक न पाए |
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए|
पृथ्वी का सीना छलनी है
जयचंदों के ही तीरों से ,
सत्य रखे आधार शिला तो
स्तम्भ बनाते शूरवीरों से |
सत्ता की मोहक मूरत से
लालच मद ने होश गवाए |
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए |
**************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
13 .11.2016 रविवार

साहित्यश्री-5//7//देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)

क्या हम जी रहे शुकुन से अपने ही देश में,
हम सबके दिलो में,ऐसे कई सवाल रहे हैं।
हम तो हमेशा चैन अमन की दुआ करते हैं,
अरे कौन हैं जो शांति में,खलल डाल रहे हैं।
हमें दुश्मनो की जरूरत ही क्या है अब ,
जो खुद ही आस्तीन के सांप पाल रहे हैं।
घर के भेदियों की कारस्तानी के कारण,
कामयाब हमारे दुश्मनो के हर चाल रहे हैं।
अरे माना की सरहदों पर जंग आम है,
पर यहाँ आँगन भी लहू से लाल रहे हैं।
यहाँ तो हर चेहरा नकाब से ढका हुआ है,
गीधड़ो के जिस्म में भी शेरो के खाल रहे है।
आज वही हमारे सीने पर गोली दागते है,
जिनकी सलामती के लिए हम ढाल रहे हैं।
आज दुश्मनी की हर हद पार कर गये हैं,
जो दोस्ती जमाने के लिए मिसाल रहे हैं।
मतलब के लिये देशभक्ति की बातें करते हैं,
जो भारत माँ को बेचने वाले दलाल रहे हैं।
मगर ऐसे हालातों के बीच......
धन्य हैं वो नौजवान जो है सरहद पर,
जो देश के लिये जान जोखिम में डाल रहे हैं।
जिन पर माँ के हाथो से लगता है टीका,
सदा ही गर्व से ऊँचे वीरों के भाल रहे हैं।
हर शख्श हमेशा फक्र करता है उनपर,
जो हमारे देश के दुश्मनो के काल रहे हैं।
अपने देश का कर्ज चुकाने हरदम तैयार,
बेमिसाल सीमा पर डटे माँ के लाल रहे हैं।
गर्व करते है माँ बाप बेटे की शहादत पर,
मानों किसी यज्ञ में वो आहुति डाल रहे हैं।
कभी शहीदों के घर वालो से पुछो दोस्तों,
कि वो खुद को ऐसे में,कैसे सम्हाल रहे हैं।

रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

साहित्यश्री-5//6//चोवा राम वर्मा "बादल"

घर का भेदी लंका ढाये ।
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घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
लंकाधिपति बन गया विभीषण
अपयश बोझ शीश उठाये ।
नाम हुआ बदनाम यहाँ तक
नाम विभीषण कोई ना रखवाये ।।
घर का भेदी लंका ढाये
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
पृथ्वीराज से छल करके
दुश्मन गौरी से जा मिलके ।
द्रोही जयचन्द बना गद्दार
गर्दन गिरा उसका भी कट के ।
जान गया पर राज ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
मातृभूमि से जो छल करता
वह कुत्ते की मौत ही मरता ।
इतिहास भरा है पढ़कर देखो
विष बेल कभी ना फलता फूलता ।
गीदड़ कभी ना सिंह को खाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
जो ईमान को बेंचा करता
उसका पेट कभी ना भरता ।
श्रापित अश्वस्थामा होकर
मारा मारा फिरता रहता ।
मिलता घाव जो भर ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
सुनो! जयचंदों शर्म करो
पाप घड़ा ऐसा ना भरो ।
जिस पत्तल में भोजन करते हो
उसमे ही ना छेद करो ।
तेरी मति किसने भरमाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
रचनाकार(विनीत)----चोवा राम वर्मा "बादल"
हथबंद 9926195747
दिनाँक 12-11--2016

साहित्यश्री-5//5//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

घर का भेदी लंका ढाये
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कुछ नाम दर्ज है,
इतिहास के पन्नों में।
कुछ नाम दर्ज है,
आज के पन्नों में।
जो मिलकर गैरों से,
अपनो का नाम लिखवा दिये,
विनास के पन्नों में।
कोई गौरी से जा मिला,
तो कोई मिल गया गोरों से।
घर की नींव हिल जाती है,
जयचंद जैसै चोरों से।
अधर्म के रथ पर ,
है;सवार आज मानव।
अपनों पर ही करवा रहे हैं,
प्रहार आज मानव।
ऐसे भेदी युगों-युगों तक,
धिक्कारे जाएंगे।
जो खाएगें घर का,
और गुण बाहर का गाएंगे।
पांडवो से मिलकर,
युयुत्सु भी सुख-चैन कहाँ पाया था?
रावण के मौत पर भी,
विभीषण सकुचाया था।
सत्य का साथ देकर भी,
विभीषण बदनामी झेल रहा है।
पर लोग आज बनकर स्वार्थी,
अपनों से ही खेल रहा है।
वो घर ; घर नही,
जहाँ छल-कपट का वास हो।
वहाँ उपजे विभीषण,सुग्रीव,
ऐसे घर का नास हो।
घर को घर बनाकर,
रखने की सौगंध खाये।
घर तुमसे है,तुम घर से हो,
तो घर की ,भेद न बताये।
मानते हो जिसे घर का,
तो उसका भी मानना होगा।
मिलकर रहेंगें सभी,
तभी तो भला होगा।
काश रावण विभीषण पर,
पांव न उठाते।
तो बनकर भेदी घर का,
लंका न ढाते।
भले ढहे अहंकार का घर।
भले ढहे विकार का घर।
कोई भेदिया वहाँ न पनपे,
सलामत रहे बस प्यार का घर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-5//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

घर का भेदी लंका ढाये।
सार छंद:--
कोई अपना राह रोकता,मंजिल कैसे जायें?
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
हुनर भरा अपने भीतर भी,कहिये किसे दिखाये?
खड़ा नही वो अपने पीछे,जिनको हुनर बताये।।
हौसला पस्त पड़ जाता है,मंजिल है खो जाता।
साथ नही मिलता अपनो का,किस्मत है सो जाता।।
खेत मुहानी अपने फोरे,कैसे फसल पकाये?
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
भरा पड़ा इतिहास हमारा,भेदी जयचन्दो से।
कैसे रण जीते रणवीरा,घर के छलछन्दो से।।
बढ़कर दुश्मन ललकार रहा,हम हांथ बांध बैठे।
चढ़ छानी होरा भून रहा,हम मौन साध बैठे।।
भेद भरम के गढ्ढे गढ़ के,प्रेम नही भरवाये।
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
अगर न होता घर मे भेदी,विजयी निश्चित होता।
फिर धोखे का दंश न होता,फिर विश्वास न रोता।।
सपने सारे पूरन होते,खिला खिला मन होता।
साहस बरसाता नील गगन,मन अन्तर्मन भिगोता।।
दुष्प्रभाव भेदी का कहिये,सोंच धरे रह जाये।
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

साहित्यश्री-5//3//नवीन कुमार तिवारी

विषय-‘"घर का भेदी लंका ढाये"
एक प्रयास ,,,,
शुभ सांध्य अभिवादन ,
शुरुवात करो सत्य मनन का
माँ भारती को कर नमन
देश सेवा में दे रहे जो प्राण उत्सर्ग
उनके शहादत को करो नमन ,
शब्द बाण तीखे न चलाओ
कुछ तो शहादत पर अश्रु बहाओ
देश की फिजा में अकारण जहर घोल रहे ,
खुजली कुत्ते बन अकारण भोंक रहे ,
शहादत उन्हें दिखती नहीं क्या ,
जो धर्म का चश्मा पहन भोंक रहे ,
अल्प ज्ञानी तो हो नहीं ,
महा ज्ञानी बन सकते नहीं ,
भेदिया विभीषण ,जयचंद मीर न बनो,
माँ भारती का कुछ जतन करो ,
करते बढे यतन से हो ,
गद्दारों की ही महिमा मंडन ,
देश द्रोहियों से क्या नाता है ?
टोपी पहन जो बहलाते हो ,,
शहद चाशनी फीकी है ,
ऐसे उनके कढवे बोल ,
चाटुकारों के छलावे में
सत्ता जाने के भुलावे में
वोट बेंक के फेर में
देश धर्म नैतिकता भूल
शब्द बाण तीखे चला
बन रहे एक नासूर ,
गद्दार का महिमा गाना ,
समानता पे टेसुआ बहाना ,
शब्द बाण तीखे न चलाओ
भस्मासुर निर्माण न करो ,,
घर का भेदी लंका ढाये
अपनी करनी स्वयं भोगे
कही स्वयं न हो जाओ
अनल शूल में काफूर ,
नवीन कुमार तिवारी ,९४७९२२७२१३
एल आई जी १४/२, नेहरू नगर पूर्व
भिलाई नगर दुर्ग छ. ग. 490020

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//2//दिलीप पटेल

घर का भेदी लंका ढाये"
-------------------------------------------------------
पराक्रमी भी जीत न पाया
तु काहे को रार मचाये
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
बाली जैसा बलशाली
क्यू चूक गयी थी प्रभू की चाली
डाल गले मे पुष्पो की माला पिछे से वार करवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
रावण जैसा महाग्यानी
सौ योजन चक्र समुद्र की पानी
देखी तरूवर वृंदा की आंगन हनुमत विभिषण से बतियाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये....
लाक्छा गृह मारने पांडवों को
शकुनी ने बोला कवरवों को
भनक लगी जब विदूर को , तो सुरंग ऊन्हो ने बनवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये,
अर्जून था निपुर्ण धनूर्विद्या में
एकलव्य भी उतनी स्वयं शिक्छा में
वचन निभाने गुरू द्रोण क्यू , एकलव्य से उंगली कटवाये
नियती नही ये तो छल है , जब घर का भेदी लंका ढाये.....
आज भी देखो घर घर में कलयुग के इस प्रमाण को
मातु - पिता को भूल के बच्चे पूज रहे पाषाण को
घर वालो से मिल कर पडोसी घर वालो को ही लडवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
परक्रमी भी जीत न पाया
तु काहे को रार मचाये
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो. नं. 8120879287

साहित्यश्री-5//1//दिलीप वर्मा

विषय--"घर का भेदी लंका ढाये"
गीत
अपने मन की बात कहो अब 
हम किसको बतलायें
जिसको हमने अपना समझा
ओ तो हुए पराये।
जाके दुश्मन के खेमे में
सारी बात बताये..
घर का भेदी लंका ढाये।
हम दुश्मन से हार सके न
अपनों से ही हारे हैं
उस पर कैसे तीर चलायें
जो अपने को प्यारे हैं
रण भूमि में खड़ा ओ आगे
कैसे कदम बढ़ायें...
घर का भेदी लंका ढाये।
कोई परिंदा मार न सकता
पर अपने ठिकाने में
जब तक भेदी भेद न खोले
दुश्मन के आशियाने में
ऐसे भेदी ढूंढ ढूंढ के
पहले फांसी चढ़ायें...
घर का भेदी लंका ढाये।
रावण बड़ा प्रतापी था ओ
और सिद्ध था योगी
ताकत तो भरपूर भरा था
पर मन से था भोगी
एक विभीषण के कारण ओ
अपनी प्राण गवाये...
घर का भेदी लंका ढाये।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाज़ार
9926170342

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

//साहित्य श्री-4 का परिणाम//

साहित्य श्री-3 ‘एक कदम उजाले की ओर‘ विषय पर आयोजित किया गया जिसमें 11 रचनाकार मित्र हिस्सा लिये । सभी रचनाकारों का प्रयास सराहनीय रहा । इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार । प्राप्त रचनाओं में भाव, शिल्प और दिये गये विषय के साथ न्याय संगतता के आधार परनिर्णायक डॉ. प्रो. चन्द्रशेखर सिंह ने निम्नानुसार परिणाम घोषित किये हैं-

प्रथम विजेता-श्री चोवा राम वर्मा ‘बादल‘
द्वितीय विजेता-श्री दिलीप कुमार वर्मा
तृतीय विजेता- श्री जीतेन्द्र वर्मा ‘खैरझिटिया

सभी विजेता बंधुओं को ‘छत्तीसगढ़ साहित्य श्री‘ एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच‘ की ओर से कोटिश बधाई ।
सभी रचनाकारो से आपेक्षा की इसी प्रकार साहित्य सृजन में सहयोग प्रदान करते रहेंगे ।

‘छत्तीसगढ़ साहित्य श्री‘

मंगलवार, 1 नवंबर 2016

//साहित्य श्री-5 की रूपरेखा//

अवधि- 1 नवम्बर 2016 से 15 नवम्बर 2016 तक
विषय-‘‘घर के भेदी लंका ढाय‘‘
विधा-विधा रहित
मंच संचालक- श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव (सह एडमिन)
निर्णायक-डाँ. प्रो. चंद्रशेखर सिंह

नियम-प्रतिभागी रचना केवल छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण में पोस्ट होनी चाहिये । प्रतियोगिता अवधि में यह रचना अन्यत्र प्रकाशित नही होना चाहिये ।
रचना के ऊपर ‘साहित्य श्री-4‘‘ हेतु रचना लिखना आवश्यक होगा ।
----------------------------------------------------------
‘साहित्य श्री‘ हिन्दी कविताओं का प्रतियोगिता
उद्देश्य -1. हिन्दी काव्य के विभिन्न विधाओ की जानकारी, उस विधा में रचना, एवं रचना में कसावट लाना । ‘सिखो और सीखाओ‘ के ध्येय वाक्य से एक दूसरे के सहयोग से अपने लेखन कर्म को सार्थक करना ।
2. विशेष कर छत्तीसगढ़ के नवरचकारो को भाव अभिव्यक्ति हेतु मंच उपलब्ध कराना ।
3. प्रदत्त विषय में लेखन क्षमता विकसित करना ।
प्रारूप-प्रत्येक माह दो आयोजन 1. 1 से 15 तारीख तक विषय/शिर्षक आधारित 2. 16 तारीख से 30 तारीख तक चित्र या काव्यांश आधारित ।
प्राप्त रचनाओं को वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकारों से मूल्यांकन करा कर श्रेष्ठता तय कर श्रेष्ठ रचना को ‘साहित्यश्री‘ के मानक उपाधी से सम्मान करना ।

साहित्यश्री-4//11//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

'उजाले की ओर हर कदम हो'
-----------------------------------
मुश्किल हो राहे फिरभी चलना होगा
अंधेरों में बनके दिया जलना होगा।
मत हारना तू! ऐ मुसाफिर
हर दर्द को चुपचाप सहना होगा।
दिल मेरा बरसों से प्यासा है
मिल जाये उम्मीद की बूँद आशा है।
लड़ जाऊ मैं भी अंधेरो से
'उजाले की आस' बस जरा सा है।
हवा बनकर हर राह चलना होगा
बिछड़े हुये लोगों से मिलना होगा।मत.....
जिंदगी की कितनी अजीबो रंग है
लोगों का भी अपना-अपना ढंग है।
मिलना बिछड़ना यहाँ रीत है'प्यारे'
हर पल जिंदगी एक जंग है।
यहां हर मौसम में ढलना होगा
उसी का दुनिया अपना होगा।मत......
जिंदगी में खुशियां हो चाहे गम हो
कितनी भी। घोर चाहे तम हो।
कुछ हासिल करना चाहते हो गर"ज्ञानु"
'उजाले की ओर हर कदम हो'
जिंदगी की हर पहलु को समझना होगा
जिंदगी जीने के लिए पल पल मरना होगा।मत..
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

साहित्यश्री-4//10//दिलीप पटेल

" एक कदम उजाले की ओर "
**************************************नित नविन शालीन पथ पर
चलना है हम सबको मिलकर
अब आ गई है क्रांती की दौर ....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
राहों में मुश्किल तुफाने को
या सागर की ऊफानो को
लांघनी हर शरहदो को, काले बादल घटा घनघाेर....
आओ मिलकर साथ बढायें एक कदम उजाले की ओर !!
छुट न जावें कोई अपना
टूट न जावें कोई सपना
दिशाओं में नही भटकेंगे , थाम कर एकता की डोर.....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दीन दूखी या कोई बेसहारा
बनेंगे हम सबका सहारा
कोई भी न भूखा सोने पाये , खायेंगे रोटी बांट कर कौंर....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
मिटेगी मन की अंधियारी
महकेगी फूलों की क्यारी
अंत होती है निशा की , पा करके रवि का भोर....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दृढता की संकल्प होगी
अब न कोई विकल्प होगी
मन में है विस्वाश हमारा , हम जा रहे है सफलता की ओर.....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो.नं.-8120879287

सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-4//9//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

'उजाले की ओर हर कदम हो'
-----------------------------------
मुश्किल हो राहे फिरभी चलना होगा
अंधेरों में बनके दिया जलना होगा।
मत हारना तू! ऐ मुसाफिर
हर दर्द को चुपचाप सहना होगा।
दिल मेरा बरसों से प्यासा है
मिल जाये उम्मीद की बूँद आशा है।
लड़ जाऊ मैं भी अंधेरो से
'उजाले की आस' बस जरा सा है।
हवा बनकर हर राह चलना होगा
बिछड़े हुये लोगों से मिलना होगा।मत.....
जिंदगी की कितनी अजीबो रंग है
लोगों का भी अपना-अपना ढंग है।
मिलना बिछड़ना यहाँ रीत है'प्यारे'
हर पल जिंदगी एक जंग है।
यहां हर मौसम में ढलना होगा
उसी का दुनिया अपना होगा।मत......
जिंदगी में खुशियां हो चाहे गम हो
कितनी भी। घोर चाहे तम हो।
कुछ हासिल करना चाहते हो गर"ज्ञानु"
'उजाले की ओर हर कदम हो'
जिंदगी की हर पहलु को समझना होगा
जिंदगी जीने के लिए पल पल मरना होगा।मत..
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

साहित्यश्री-4//8//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

💥एक कदम उजाले की ओर💥
-------------------------------------------
न देख पाँव के,
छाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
चलकर ही हासिल होगी,
खुशियाँ जीवन में,
फिर क्यों झाँकता है,
किस्मत के आले की ओर।
उजाला अच्छाई का,
दुर्गम पथ है।
तम बुराई का,
सुगम रथ है।
एक जीवन खुशियों से भरती है।
एक खुशियों में ही छेद करती है।
फिर क्यों जा रहे हो,
तम के जाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
तिमिर पथ भी जगमग होगी।
जब उजाले में पग होगी।
राह में आएगीं रुकावटें बहुत,
चोर-उचक्का और ठग होगी।
लगन की चाबी को घुमा,
खुशियाँ रूपी ताले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
कार्तिक अमावस की,दिवाली देख लो।
चंद दीयों में रौशन,रात काली देख लो।
ऐसी बरसी माँ लक्ष्मी ,की कृपा,
भर गये हाथ , खाली देख लो।
प्रेम का दीपक दिल में जला,
न भाग बरछी-भाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-4//7//सुनिल शर्मा"नील"

"एक कदम उजाले की ओर"
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
"तम" को "श्रम" से हराकर,तिरंगा
लहर-लहर लहराते है
"उद्यम" के महामंत्र से,भारत को
विश्वगुरु बनाते है
असीमित ऊर्जा है हममें,आओ
पहचाने इसे
उजाले की ओर चलो एक कदम
बढ़ाते है
कहीं बर्बाद होता भोजन,कहीं लोग
भूखे सो जाते है
ऐसे असमानता के रहते भला,किस
विकास पर इतराते है
इस दीवाली शांत कर भूखों की
क्षुधा को
प्रकाश में दीए के चलो "भूख"
को जलाते है
"बेटियाँ" आज भी भीड़ में निकलने
से घबराती है
कितनी बेटियों की अस्मत हर रोज
लूटी जाती है
करके दुशासन का वध,हराकर कौरव
सेना को
समाज में नारी को निर्भयतापूर्वक
जीना सिखातें है
स्वार्थ में अंधे होकर हमने स्वयं पर ही
वार किया
नष्ट किया जल,जंगल और जमीन को
जीवों का संहार किया
इससे पहले पूर्णतः नष्ट हो जाए
प्यारी प्रकृति
चलो नारा "सहअस्तित्व" का जन-जन
को सिखातें है
किस बात की डिग्रियाँ जब तक देश में
अशिक्षा का नाम है
अंधविश्वास और कुरीतियों के कारण
राष्ट्र होता बदनाम है
हर कोने तक प्रकाशित हो शिक्षा का
दिव्य प्रकाश
मिलकर परस्पर चलो ऐसा "दिनकर"
उगाते है
हमारे सुकून की खातिर जो सीमा पर
प्राण गंवातें है
देश के कुछ आस्तीन फिर भी जिनका
हौंसला गिराते है
बनकर संबल ऐसे माँ भारती के
सपूतों का
आतंकवादियों को चलो उनकी
औकात बताते है
स्वच्छता का भारत के हर घर में
संस्कार हो
स्वस्थ रहे समाज मेरा न कोई इसमें
विकार हो
भाव ये प्रतिबद्ध होकर दौड़े हर
हृदय में
चलो मिलकर एक नया "स्वच्छ
भारत बनाते है|
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
28/10/2016
Copyright

साहित्यश्री-4//6// गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" एक कदम उजाले की ओर "
जागरे, मन जागरे,
नई सुबह की ओर कदम राख रे!
पराधीनता के अक्टपाश से
मुक्त होने उठ रे।
गर्जन देशप्रेमी सेनानी का
कदम कदम बाढाते जा,
न​ई संकल्प लेते जा
बेटी नारी बचाते जा। 
मनाते हो परव दीपान्विता
नवरात्री, जागराता! 
लक्ष्मी दुर्गा पूजते हो 
कन्याभ्रूण भी हत्या करते हो! 
महामाया रूठेगी 
बंशबृद्धि रुखेगी। 
अंगन में दीपक बुझेगा 
अन्धेरा छा जाएगा!
मन, एक कदम आगे आ जा
बन्ध कर नारी निर्यातन प्रतारना। 
दीप लक्ष्मी जगमगेगी
संसार उजला की ओर बढेगी॥ 
######
( गोपाल चन्द्र मुखर्जी )

साहित्यश्री-4//5//शुभम वैष्णव

क्योकि नहीं है जीवन में सिर्फ अँधेरा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
माना दुनिया में बहुत है तेरे दुश्मन।
लेकिन कुछ करने का आज बना ले मन।
मिलता किसे नहीं दुनिया में दर्द भला,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
औरों की भलाई लोग अगर करते हैं।
वो अमर होते है जब कभी भी मरते हैं।
अपना हाँथ बढ़ाने से न ऐसे घबरा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
तेरे साथ खड़ा ये सारा जमाना है।
तुमको स्वर्ग धरा को फिर से बनाना है
जितनी है हिम्मत तुझमे वो आज लगा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
अभिमन्यु की वीरता तू करके याद निकल।
तेरा क्या है ये समझने के बाद निकल।
तेरे खातिर सभी करेंगे आज दुआ,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
-शुभम वैष्णव

साहित्यश्री-4//4//आचार्य तोषण

"एक कदम उजाले की ओर..."
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
मंजिल देखती राह हमारी ,कब तुम कदम बढाओगे
रहना है खरहा बनकर या, कच्छप की दौड़ लगाओगे
त्याग निद्रा आलस की ,जगा रही दिनकर की भोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
हार न माने चींटी कभी जब, अपनी कदम बढाती है
कदम बढाए कर्मपथ पर ,नीत मंजिल को पा जाती है
उत्साह जगाकर राह बनाए, बांधे मन साहस की डोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
दीपों की है अवली सजी ,द्वार द्वार हो रहे मंगलाचार
नवप्रकाश है नवप्रभात है ,यह दीपावली का त्यौहार
समता ममता भाव एक हो, आओ मनाएं सब पुर जोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
©®
आचार्य तोषण ,धनगांव डौंडीलोहारा,बालोद
छ. ग.४९१७७१

साहित्यश्री-4//3//दिलीप कुमार वर्मा

""एक कदम उजाले की ओर""
चलो घर-घर दीप जलाएं,
कोने-कोने को चमकाएं। 
प्रेम भरा अमृत बरसा कर
घर आँगन सब का महकाएं।
रहे न कोई कमजोर
एक कदम उजाले की ओर। ।1।
चलो सदा नेकी कर जाएं
भटके को हम राह दिखाएँ ।
मानवता का बन मिशाल हम
हाँथ पकड़ मंजिल पहुंचाए।
भाई चारे का दौर
एक कदम उजाले की ओर। ।2।
झोपड़ पट्टी कहीं दिखे न
दुखिया हमसे कहीं छिपे न
हर पंगु का पैर बने हम
पग हमारा कहीं रुके न।
तिमिर न हो घनघोर
एक कदम उजाले की ओर। ।3।
चारो तरफ खुशियाँ बगराएं
बच्चों में हम प्यार लुटाएं
अपनों का एहसास दिलाकर
दया मया सब में बरसाएं।
खुशियों का हो शोर
एक कदम उजाले की ओर। ।4।
हर एक घर में चंदा चमके
घर-घर में अब सूरज दमके
बिछे चाँदनी आँगन-आँगन
सुबह शाम घर खुशियाँ खनके
सुंदर सा हो भोर
एक कदम उजाले की ओर। ।5।
कहीं न कोई भिखारी होगा
चलने को न कटारी होगा
हर कोई अब सांथ रहेंगे ।
कहीं न अब अंधियारी होगा
गूंजे नभ में शोर
एक कदम उजाले की ओर। ।6।
जहां कोई न भूखा होगा
देश कभी न सुखा होगा
मेहनत की जो राह पकड़ लें
बात कभी न झूठा होगा।
उजियारा हो अंतिम छोर
एक कदम उजाले की ओर। ।7।
चलो स्वच्छता अलख जगाएं
जन-जन को हम कह समझाएं
शौचालय की राह पकड़ कर
सुंदर भारत देश बनाएं।
रखें स्वच्छ सब ओर
एक कदम उजाले की ओर। ।8।
दिलीप कहे ये बात पुरानी
घटी है घटना, नहीं कहानी
एक अकेला तोड़ पहाड़ी
करी सुगम ओ राह दुखानी ।
साहस था पुर जोर
एक कदम उजाले की ओर। ।9।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाजार
9926170342

साहित्यश्री-4//2//चोवा राम वर्मा "बादल "

उजाले की ओर --(आह्वान)
सत्पथ के लिए होकर विकल
तोड़ कारा तम का,बाहर निकल ।
मचल मचल कर अचल ध्येय 
क्यों होगा विष तेरा पाथेय ।
दिखा पूर्ण दमखम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर। 1।
दिनकर चन्द्र सितारे
जुगनू भी नही हारे ।
देता संदेश यही दीपक
परोपकार करो भरसक ।
त्याग अहम, बोलो हम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर ।2 ।
चिंगारी भर चिंतन में ,
देश प्रेम अंकित कर मन में ।
भेदभाव के तक्षक का,
भाईचारे के भक्षक का ।
फण कुचल निकालो दम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर । 3 ।
ना दीन बनें ना हिन बनें ,
स्वाभिमान का शौकीन बनें ।
वन्दनीय फक्कड़ फकीर ,
रहीम सूर तुलसी कबीर ।
क्षत्रपति से हैं क्या कम ?
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर । 4 ।
श्रम सीकर से शोभित भाल ,
ऋजुपथ गामी सिंहवत चाल ।
मृदु मुस्कान-फुलझड़ी झरे ,
जगमग दीवाली उमंग भरे ।
होगा सत्यम शिवम् सुंदरम
बढ़ा एक कदम
उजाले। की ओर ।
रचनाकार---चोवा राम वर्मा "बादल "
हथबंद

साहित्यश्री-4//1//राजेश कुमार निषाद

।। एक कदम उजाले की ओर ।।
जितनी भीड़ बड़ रही है जमाने में
लोग उतने ही अकेले होते जा रहे है।
इस दुनिया के लोगो को कौन समझायें
सारे खिलौना छोड़कर जज्बातों से खेले जा रहे है।
इन सबसे तुम दूर रहो ना देखो मुड़कर पीछे की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
तुम स्वर्ग का सपना छोड़ दो
नर्क से अपना नाता तोड़ दो।
पाप पुण्य का लेखा जोखा तो ईश्वर का है
अपने सारे कर्म कुदरत पर छोड़ दो।
मन में ना रखो कोई भावना जो कर दे आपको कमजोर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
राहों में कितने भी मुश्किल हो
पर तुम निकल जाओगे।
कितने भी ठोकर खा लो चाहे
पर तुम सम्भल जाओगे।
ये अँधेरा है जो जुगनू से भी घबराता है
सदा तुम प्रकाशवान बनो न देखो सूरज की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
उम्र भर तुम्हे कोई साथ नही देगा
अकेला तुम्हे रहना है।
पथ में तुम्हारे कितने भी मुश्किलें आये
कठोर बन कर तुम्हे सहना है।
चिंताओं को दूर कर छोड़ दो उसे पीछे की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

//साहित्य श्री-3 का परिणाम//

‘साहित्य श्री-3‘ ‘जय माता दी‘ विषय पर आयोजित किया गया जिसमें 10 रचनाकार मित्र हिस्सा लिये । सभी रचनाकारों का प्रयास सराहनीय रहा । इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार । प्राप्त रचनाओं में भाव, शिल्प और दिये गये विषय के साथ न्याय संगतता के आधार पर ‘श्रीमती आशा देशमुख‘ को ‘साहित्य श्री ‘ से सम्मानित किया जा रहा है ।


आदरणीया श्रीमती आशा देशमुख को छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच की ओर से कोटिश बधाई ।

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-3//10//आशा देशमुख

विषय __जय माता दी
जय माता दी जय माता दी
दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ,
हाँथ जोर सब भक्त खड़े हैं ,
गूँज रहे जयकारे माँ |
आदिशक्ति हे मातु अम्बिके ,
अजा अनंता कल्याणी ,
माया विद्या उमा अपर्णा ,
कामाक्षा हे शिवरानी |
वेद ऋचाएँ मंगल गाएं ,आरत साँझ सकारे माँ |
जय माता दी जय माता दी,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
अष्टभुजी पर्वतनिवासिनी
शैलसुता ज्ञाना गौरी ,
मातंगी वनदुर्गा चित्रा
युवती प्रौढ़ा कैशोरी |
बहुरूपा हे मंगलकरनी ,मुदिता दृष्टि निहारे माँ |
जय माता दी जय माता दी ,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
शूल धारणी पाप नाशनी
कालि कराली विकराली ,
त्रिनेत्रा वाराही पाटला
रौद्रमुखी हे बलशाली |
असुरमर्दिनी भवभयहरणी ,भक्तो के दुख टारे माँ |
जय माता दी जय माता दी ,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
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आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
13 -10-2016 ....गुरुवार

साहित्यश्री-3//9//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

****जय माता दी*****
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पी ले माता रानी की,
भक्ति का रस घोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी"बोलकर।
न पड़ मोह - माया में।
न जड़ ताला काया में।
आधार बना माँ भवानी को।
दिन गुजार उनकी छाया में।
न दिल दुखा किसी का,
बोल बानी तोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी" बोलकर।
ह्रदय में अपने, बसाले माँ को।
रोते को हँसाकर,हँसाले माँ को।
क्यों फांसते हो छल से किसी को,
अपनी भक्ति में फंसाले माँ को।
तिनका - तिनका तज माया का,
बस माँ की भक्ति का मोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
सुम्भ -निसुम्भ, चण्ड-मुण्ड,
है महिषासुर घाती माँ।
भैरव लँगुरे द्वार खड़े,
भक्तन काज बनाती माँ।
खाली झोली भरती माँ,
आशीष देती दिल खोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
दर्शन की लगन लागी हो।
मन भक्ति का आदी हो।
जीवन सफल हो जायेगा,
मुँह में "जय माता दी" हो।
माँ की शरण में पड़े जीतेन्द्र,
गुण गाये डोल - डोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-3//8//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

जय माता दी.....
चाहे शीतल छांव हो या फिर खिलती धुप में
कण कण में विराजित है माँ दुर्गा कई रूप में
तेरी हर मुराद पूरी होगी यहां,मांग ले बन्दे
बस जयकारा लगा "जय माता दी" बोल...
फिक्र क्यों करता है इस नश्वर काया की
बेड़ियों में क्यों जकड़ा है मोह माया की
धन्य हो जायेगा,जो माँ के दर्शन पायेगा
ध्यान लगा बस,अंतर्मन के पट खोल...
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
डूब जा भक्ति भाव में,तू सफल हो जायेगा
मन तेरा,पवित्र पावन निश्छल हो जायेगा
परमार्थ का काज कर,व्यर्थ ना गवां इसे
औरो के काम आ,ये जीवन है अनमोल....
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
माँ के दरबार में बस मांगने चला आता है
तू नई हसरत,नई मन्नत लिये चला आता है
श्रद्धा में भी,तेरा स्वार्थ छुपा कहीँ ना कहीँ
निश्वार्थ क्या किया अपने अंदर भी टटोल...
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
अरे माँ तो सबको सहारा देती है
सबको जीने का गुजारा देती है
इंसानियत का धरम पहले निभा
मानवता के तराजू में खुद को तौल....
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल....
*रचना*
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

साहित्यश्री-3//7//गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" जय माता दी "
जय माता दी जयकारा 
संतान तेरा करेगा क्या!
माँ,आप जाकर बैठी हो 
दुर्गम पर्वत पर, 
अन्धेरा गुफा में 
घनघोर गभीर जंगल में। 
चाहते है मन, तेरी दर्शण, 
खुशीभरे दिल, मन चंचल। 
भुखे - प्यासा पैर लड्खराई 
तेरी नाम ही संबल हे महामाई। 
दिए चले तेरा जयकारा
जय माता दी, जय हो माता, 
दर्शण मिलें चरण तुम्हारी 
सार्थक हो जनम हमारी॥ 
माता जी,आप ही महाचण्डी,
महालक्ष्मी,महासरस्वती। 
आप ही आदिशक्ति महामाया वैष्णवी
दशमहाविद्या करालबदना महाकाली। 
अरिहन्ती रक्षाकर्ती शिवप्रिया भैरवी 
त्रिनेत्री अस्टभूजी सन्तानस्नेही गौरी॥ 
यौवनवती तेजोमयी प्रचण्ड बलशालीनी
रणप्रिया अभया दुर्गे, दुर्गति नाशिनी, 
सर्वपाप विनाशिनी धर्म मोक्ष दयिनी। 
मनाते है संतान नवरात्री 
जागरन, जयकारा जय माता दी॥ 
*** 
(गोपाल चन्द्र मुखर्जी)