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मंगलवार, 1 नवंबर 2016

साहित्यश्री-4//11//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

'उजाले की ओर हर कदम हो'
-----------------------------------
मुश्किल हो राहे फिरभी चलना होगा
अंधेरों में बनके दिया जलना होगा।
मत हारना तू! ऐ मुसाफिर
हर दर्द को चुपचाप सहना होगा।
दिल मेरा बरसों से प्यासा है
मिल जाये उम्मीद की बूँद आशा है।
लड़ जाऊ मैं भी अंधेरो से
'उजाले की आस' बस जरा सा है।
हवा बनकर हर राह चलना होगा
बिछड़े हुये लोगों से मिलना होगा।मत.....
जिंदगी की कितनी अजीबो रंग है
लोगों का भी अपना-अपना ढंग है।
मिलना बिछड़ना यहाँ रीत है'प्यारे'
हर पल जिंदगी एक जंग है।
यहां हर मौसम में ढलना होगा
उसी का दुनिया अपना होगा।मत......
जिंदगी में खुशियां हो चाहे गम हो
कितनी भी। घोर चाहे तम हो।
कुछ हासिल करना चाहते हो गर"ज्ञानु"
'उजाले की ओर हर कदम हो'
जिंदगी की हर पहलु को समझना होगा
जिंदगी जीने के लिए पल पल मरना होगा।मत..
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

साहित्यश्री-4//10//दिलीप पटेल

" एक कदम उजाले की ओर "
**************************************नित नविन शालीन पथ पर
चलना है हम सबको मिलकर
अब आ गई है क्रांती की दौर ....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
राहों में मुश्किल तुफाने को
या सागर की ऊफानो को
लांघनी हर शरहदो को, काले बादल घटा घनघाेर....
आओ मिलकर साथ बढायें एक कदम उजाले की ओर !!
छुट न जावें कोई अपना
टूट न जावें कोई सपना
दिशाओं में नही भटकेंगे , थाम कर एकता की डोर.....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दीन दूखी या कोई बेसहारा
बनेंगे हम सबका सहारा
कोई भी न भूखा सोने पाये , खायेंगे रोटी बांट कर कौंर....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
मिटेगी मन की अंधियारी
महकेगी फूलों की क्यारी
अंत होती है निशा की , पा करके रवि का भोर....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दृढता की संकल्प होगी
अब न कोई विकल्प होगी
मन में है विस्वाश हमारा , हम जा रहे है सफलता की ओर.....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो.नं.-8120879287

सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-4//9//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

'उजाले की ओर हर कदम हो'
-----------------------------------
मुश्किल हो राहे फिरभी चलना होगा
अंधेरों में बनके दिया जलना होगा।
मत हारना तू! ऐ मुसाफिर
हर दर्द को चुपचाप सहना होगा।
दिल मेरा बरसों से प्यासा है
मिल जाये उम्मीद की बूँद आशा है।
लड़ जाऊ मैं भी अंधेरो से
'उजाले की आस' बस जरा सा है।
हवा बनकर हर राह चलना होगा
बिछड़े हुये लोगों से मिलना होगा।मत.....
जिंदगी की कितनी अजीबो रंग है
लोगों का भी अपना-अपना ढंग है।
मिलना बिछड़ना यहाँ रीत है'प्यारे'
हर पल जिंदगी एक जंग है।
यहां हर मौसम में ढलना होगा
उसी का दुनिया अपना होगा।मत......
जिंदगी में खुशियां हो चाहे गम हो
कितनी भी। घोर चाहे तम हो।
कुछ हासिल करना चाहते हो गर"ज्ञानु"
'उजाले की ओर हर कदम हो'
जिंदगी की हर पहलु को समझना होगा
जिंदगी जीने के लिए पल पल मरना होगा।मत..
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

साहित्यश्री-4//8//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

💥एक कदम उजाले की ओर💥
-------------------------------------------
न देख पाँव के,
छाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
चलकर ही हासिल होगी,
खुशियाँ जीवन में,
फिर क्यों झाँकता है,
किस्मत के आले की ओर।
उजाला अच्छाई का,
दुर्गम पथ है।
तम बुराई का,
सुगम रथ है।
एक जीवन खुशियों से भरती है।
एक खुशियों में ही छेद करती है।
फिर क्यों जा रहे हो,
तम के जाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
तिमिर पथ भी जगमग होगी।
जब उजाले में पग होगी।
राह में आएगीं रुकावटें बहुत,
चोर-उचक्का और ठग होगी।
लगन की चाबी को घुमा,
खुशियाँ रूपी ताले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
कार्तिक अमावस की,दिवाली देख लो।
चंद दीयों में रौशन,रात काली देख लो।
ऐसी बरसी माँ लक्ष्मी ,की कृपा,
भर गये हाथ , खाली देख लो।
प्रेम का दीपक दिल में जला,
न भाग बरछी-भाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-4//7//सुनिल शर्मा"नील"

"एक कदम उजाले की ओर"
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"तम" को "श्रम" से हराकर,तिरंगा
लहर-लहर लहराते है
"उद्यम" के महामंत्र से,भारत को
विश्वगुरु बनाते है
असीमित ऊर्जा है हममें,आओ
पहचाने इसे
उजाले की ओर चलो एक कदम
बढ़ाते है
कहीं बर्बाद होता भोजन,कहीं लोग
भूखे सो जाते है
ऐसे असमानता के रहते भला,किस
विकास पर इतराते है
इस दीवाली शांत कर भूखों की
क्षुधा को
प्रकाश में दीए के चलो "भूख"
को जलाते है
"बेटियाँ" आज भी भीड़ में निकलने
से घबराती है
कितनी बेटियों की अस्मत हर रोज
लूटी जाती है
करके दुशासन का वध,हराकर कौरव
सेना को
समाज में नारी को निर्भयतापूर्वक
जीना सिखातें है
स्वार्थ में अंधे होकर हमने स्वयं पर ही
वार किया
नष्ट किया जल,जंगल और जमीन को
जीवों का संहार किया
इससे पहले पूर्णतः नष्ट हो जाए
प्यारी प्रकृति
चलो नारा "सहअस्तित्व" का जन-जन
को सिखातें है
किस बात की डिग्रियाँ जब तक देश में
अशिक्षा का नाम है
अंधविश्वास और कुरीतियों के कारण
राष्ट्र होता बदनाम है
हर कोने तक प्रकाशित हो शिक्षा का
दिव्य प्रकाश
मिलकर परस्पर चलो ऐसा "दिनकर"
उगाते है
हमारे सुकून की खातिर जो सीमा पर
प्राण गंवातें है
देश के कुछ आस्तीन फिर भी जिनका
हौंसला गिराते है
बनकर संबल ऐसे माँ भारती के
सपूतों का
आतंकवादियों को चलो उनकी
औकात बताते है
स्वच्छता का भारत के हर घर में
संस्कार हो
स्वस्थ रहे समाज मेरा न कोई इसमें
विकार हो
भाव ये प्रतिबद्ध होकर दौड़े हर
हृदय में
चलो मिलकर एक नया "स्वच्छ
भारत बनाते है|
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सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
28/10/2016
Copyright

साहित्यश्री-4//6// गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" एक कदम उजाले की ओर "
जागरे, मन जागरे,
नई सुबह की ओर कदम राख रे!
पराधीनता के अक्टपाश से
मुक्त होने उठ रे।
गर्जन देशप्रेमी सेनानी का
कदम कदम बाढाते जा,
न​ई संकल्प लेते जा
बेटी नारी बचाते जा। 
मनाते हो परव दीपान्विता
नवरात्री, जागराता! 
लक्ष्मी दुर्गा पूजते हो 
कन्याभ्रूण भी हत्या करते हो! 
महामाया रूठेगी 
बंशबृद्धि रुखेगी। 
अंगन में दीपक बुझेगा 
अन्धेरा छा जाएगा!
मन, एक कदम आगे आ जा
बन्ध कर नारी निर्यातन प्रतारना। 
दीप लक्ष्मी जगमगेगी
संसार उजला की ओर बढेगी॥ 
######
( गोपाल चन्द्र मुखर्जी )

साहित्यश्री-4//5//शुभम वैष्णव

क्योकि नहीं है जीवन में सिर्फ अँधेरा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
माना दुनिया में बहुत है तेरे दुश्मन।
लेकिन कुछ करने का आज बना ले मन।
मिलता किसे नहीं दुनिया में दर्द भला,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
औरों की भलाई लोग अगर करते हैं।
वो अमर होते है जब कभी भी मरते हैं।
अपना हाँथ बढ़ाने से न ऐसे घबरा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
तेरे साथ खड़ा ये सारा जमाना है।
तुमको स्वर्ग धरा को फिर से बनाना है
जितनी है हिम्मत तुझमे वो आज लगा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
अभिमन्यु की वीरता तू करके याद निकल।
तेरा क्या है ये समझने के बाद निकल।
तेरे खातिर सभी करेंगे आज दुआ,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
-शुभम वैष्णव

साहित्यश्री-4//4//आचार्य तोषण

"एक कदम उजाले की ओर..."
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
मंजिल देखती राह हमारी ,कब तुम कदम बढाओगे
रहना है खरहा बनकर या, कच्छप की दौड़ लगाओगे
त्याग निद्रा आलस की ,जगा रही दिनकर की भोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
हार न माने चींटी कभी जब, अपनी कदम बढाती है
कदम बढाए कर्मपथ पर ,नीत मंजिल को पा जाती है
उत्साह जगाकर राह बनाए, बांधे मन साहस की डोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
दीपों की है अवली सजी ,द्वार द्वार हो रहे मंगलाचार
नवप्रकाश है नवप्रभात है ,यह दीपावली का त्यौहार
समता ममता भाव एक हो, आओ मनाएं सब पुर जोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
©®
आचार्य तोषण ,धनगांव डौंडीलोहारा,बालोद
छ. ग.४९१७७१

साहित्यश्री-4//3//दिलीप कुमार वर्मा

""एक कदम उजाले की ओर""
चलो घर-घर दीप जलाएं,
कोने-कोने को चमकाएं। 
प्रेम भरा अमृत बरसा कर
घर आँगन सब का महकाएं।
रहे न कोई कमजोर
एक कदम उजाले की ओर। ।1।
चलो सदा नेकी कर जाएं
भटके को हम राह दिखाएँ ।
मानवता का बन मिशाल हम
हाँथ पकड़ मंजिल पहुंचाए।
भाई चारे का दौर
एक कदम उजाले की ओर। ।2।
झोपड़ पट्टी कहीं दिखे न
दुखिया हमसे कहीं छिपे न
हर पंगु का पैर बने हम
पग हमारा कहीं रुके न।
तिमिर न हो घनघोर
एक कदम उजाले की ओर। ।3।
चारो तरफ खुशियाँ बगराएं
बच्चों में हम प्यार लुटाएं
अपनों का एहसास दिलाकर
दया मया सब में बरसाएं।
खुशियों का हो शोर
एक कदम उजाले की ओर। ।4।
हर एक घर में चंदा चमके
घर-घर में अब सूरज दमके
बिछे चाँदनी आँगन-आँगन
सुबह शाम घर खुशियाँ खनके
सुंदर सा हो भोर
एक कदम उजाले की ओर। ।5।
कहीं न कोई भिखारी होगा
चलने को न कटारी होगा
हर कोई अब सांथ रहेंगे ।
कहीं न अब अंधियारी होगा
गूंजे नभ में शोर
एक कदम उजाले की ओर। ।6।
जहां कोई न भूखा होगा
देश कभी न सुखा होगा
मेहनत की जो राह पकड़ लें
बात कभी न झूठा होगा।
उजियारा हो अंतिम छोर
एक कदम उजाले की ओर। ।7।
चलो स्वच्छता अलख जगाएं
जन-जन को हम कह समझाएं
शौचालय की राह पकड़ कर
सुंदर भारत देश बनाएं।
रखें स्वच्छ सब ओर
एक कदम उजाले की ओर। ।8।
दिलीप कहे ये बात पुरानी
घटी है घटना, नहीं कहानी
एक अकेला तोड़ पहाड़ी
करी सुगम ओ राह दुखानी ।
साहस था पुर जोर
एक कदम उजाले की ओर। ।9।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाजार
9926170342

साहित्यश्री-4//2//चोवा राम वर्मा "बादल "

उजाले की ओर --(आह्वान)
सत्पथ के लिए होकर विकल
तोड़ कारा तम का,बाहर निकल ।
मचल मचल कर अचल ध्येय 
क्यों होगा विष तेरा पाथेय ।
दिखा पूर्ण दमखम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर। 1।
दिनकर चन्द्र सितारे
जुगनू भी नही हारे ।
देता संदेश यही दीपक
परोपकार करो भरसक ।
त्याग अहम, बोलो हम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर ।2 ।
चिंगारी भर चिंतन में ,
देश प्रेम अंकित कर मन में ।
भेदभाव के तक्षक का,
भाईचारे के भक्षक का ।
फण कुचल निकालो दम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर । 3 ।
ना दीन बनें ना हिन बनें ,
स्वाभिमान का शौकीन बनें ।
वन्दनीय फक्कड़ फकीर ,
रहीम सूर तुलसी कबीर ।
क्षत्रपति से हैं क्या कम ?
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर । 4 ।
श्रम सीकर से शोभित भाल ,
ऋजुपथ गामी सिंहवत चाल ।
मृदु मुस्कान-फुलझड़ी झरे ,
जगमग दीवाली उमंग भरे ।
होगा सत्यम शिवम् सुंदरम
बढ़ा एक कदम
उजाले। की ओर ।
रचनाकार---चोवा राम वर्मा "बादल "
हथबंद

साहित्यश्री-4//1//राजेश कुमार निषाद

।। एक कदम उजाले की ओर ।।
जितनी भीड़ बड़ रही है जमाने में
लोग उतने ही अकेले होते जा रहे है।
इस दुनिया के लोगो को कौन समझायें
सारे खिलौना छोड़कर जज्बातों से खेले जा रहे है।
इन सबसे तुम दूर रहो ना देखो मुड़कर पीछे की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
तुम स्वर्ग का सपना छोड़ दो
नर्क से अपना नाता तोड़ दो।
पाप पुण्य का लेखा जोखा तो ईश्वर का है
अपने सारे कर्म कुदरत पर छोड़ दो।
मन में ना रखो कोई भावना जो कर दे आपको कमजोर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
राहों में कितने भी मुश्किल हो
पर तुम निकल जाओगे।
कितने भी ठोकर खा लो चाहे
पर तुम सम्भल जाओगे।
ये अँधेरा है जो जुगनू से भी घबराता है
सदा तुम प्रकाशवान बनो न देखो सूरज की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
उम्र भर तुम्हे कोई साथ नही देगा
अकेला तुम्हे रहना है।
पथ में तुम्हारे कितने भी मुश्किलें आये
कठोर बन कर तुम्हे सहना है।
चिंताओं को दूर कर छोड़ दो उसे पीछे की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983