शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

साहित्यश्री-2//10//हेमलाल साहू

@बेजा कब्जा @
करै बेजा सभी कब्जा, आज स्वार्थी लोग।
सब दिये है काँट जंगल, फ़ैलते अब रोग।।
खूब पर्यावरण पर हम, किये अत्याचार।
आज देखो सभी कितने, हो गये लाचार।।
शुद्ध पानी खोजते है, नही मिलता आज।
साँस लेना हुआ दुर्भर, मर रहै वनराज।।
भूमि अपनी आज देखोे, बनी रेगिस्तान।
मंडराया काल देखो, बचे न अब जान।।
छोड़ बेजा सभी कब्जा, प्रकृति को मत छेड़।
रहे उज्ज्वल कल हमारा, तुम लगाओ पेड़।
सोच बदलो सभी अपनी, करे विनती हेम।
रखों रिश्ता अब प्रकृति से, करो उनसे प्रेम।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
(छत्तीसगढ़) मो. 9977831273

साहित्यश्री-2,//9//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

कुंडली छंद--
लालच सुरसा की बहन,लालच का सिर फोड़।
जीवन मूल्य कर सुरक्षित,बेजा कब्जा छोड़।।
बेजा कब्जा छोड़,करने जन जीवन भला।
हिसगा रूंधानी तोड़,नफरत की फसले जला।।
सुम्मत बिरवा लगा,समरसता मे चल चला।
बबूल के पेड़ मे,फल आम है कहां फला।।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

साहित्यश्री-2//8//जगदीश "हीरा" साहू

धरती माँ अपनी, व्यथा सुना रही है ।
दिनों दिन बेजाकब्जा, बढ़ती जा रही है।।
गायें भटक रही, भूख मर रही है,
चारागाह के अभाव में ।
मनुष्यों की ग्रास बन गई भूमि,
आतताइयों के स्वभाव में।।
जिस राह से गुजर जाती थी गाड़िया,
आज हो गई इतनी सकरी।
गाड़ियों की जाना तो दूर की बात,
अब अटक जाये वहाँ बकरी।।
दुनिया में ये कैसी, विकास आ रही है।
दिनों दिन बेजाकब्जा, बढ़ती जा रही है।।
सड़कों पर गाय, भैंस,
बकरी, कब्जा जमा रहे हैं।
ऐसे चलते और चलाये जाते हैं,
जैसे रोड टैक्स पटा रहे हैं।।
स्कूल की छुट्टी के बाद स्कूल में,
बेजाकब्जा है जुआ और नशेड़ियों का।
तनिक भी दर नहीँ मन में,
सजा और बेड़ियों का।।
अब सब कुछ हथियाने की, बू आ रही है।
दिनों दिन बेजाकब्जा, बढ़ती जा रही है।।
महिला सरपंच के अधिकारों का,
बेजाकब्जा कर रहे हैं सरपंच पति।
नशे की लत में पड़े गुरूजी की,
पासबुक भट्ठी में है, परिवार की है दुर्गति।।
हमारी बहनों और बेटियों पर,
नजर गड़ाये हैं दुर्बुद्धि दुर्मति।।
बेजाकब्जा की अत्याचार, सर चढ़ती जा रही है।
दिनों दिन बेजा कब्जा, बढ़ती जा रही है।।
औरों को छोडो हमारा पूरा तन है,
बेजाकब्जा के वश में।
माया की फैलाई जाल,
शब्द, स्पर्श, गंध, रूप रस में।।
आओ मित्रों हम सबसे पहले,
स्वयं की बेजाकब्जा दूर करें।
मानव जीवन है अनमोल,
जग में मशहूर करें।।
मेरी कविता आप, सबको जगा रही है।
दिनों दिन बेजाकब्जा, बढ़ती जा रही है।।
जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता पं.)
कड़ार (भाटापारा)२७९१६
9009128538

साहित्यश्री-2//7//*कन्हैया साहू "अमित"*

गाँव,गली और नगर, शहर,
अतिक्रमण का बढता कहर ।
चौंक चौपाल गलियाँ ये संकरे,
निजस्वार्थ में हुए अंधें बहरें।
उद्यान,मैदान ये स्कुल,गौठान,
ना छोङा चारागाह ना श्मशान।
धरती को मानें स्वयं की पूंजी,
अतिक्रमण इन्हें विकल्प सूझी।
जमीन सरकारी हो या आबादी,
हो गई उसी की जो झंङा गङा दी।
"पावर", पैसा, पहुँच, पकङ से,
मनमर्जी जो जमीन जकङ लें।
कौन बोलेगा,कौन अब सुनेगा,
सत्ता के आगे सभी यहाँ झुकेगा।
जमीन मिट्टी नहीं खरा सोना है,
मौका हाथों से स्वर्णिम क्यों खोना है?
बिजली,पानी झटपट पा जाऐं,
बेजा कब्जा जो ज्यादा जोर जमाऐं।
मौन है सत्ता,सरकारें छलती,
अतिक्रमण हटाओ ही कहती।
दृढ ईच्छा शासन नहीं दिखाती,
निरिह गरीब को ही ये सताती ।
शासक ही ये कुटील फरेबी है,
अतिक्रमण इनकी धनदेवी है।
***************************
*कन्हैया साहू "अमित"*
*शिक्षक* हथनीपारा~भाटापारा
जिला~बलौदाबाजार (छ.ग.)
********************************

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

साहित्यश्री-2//6//आशा देशमुख

विषय अतिक्रमण (बेजकब्ज़ा)
आज प्रकृति के हर तत्वों पर मानव अतिक्रमण कर रहा है जिससे कई तरह की विपदायें धरती झेल रही है ,इन्ही भावो को इंगित करता मेरा ये गीत |
अतिक्रमण
थक गए अहिराज अब तो त्रस्त महि के भार से
हेतु क्या है युग समर की
नीति को समझें जरा,
मूक क्रंदन से निकलती
आह को सुन लें ज़रा ,
ज़लज़ला हँसता सृजन के दीनता व्यवहार से
थक गए अहिराज अब तो त्रस्त महि के भार से|
कण्ठ सूखे निर्झरी के
मेरु खंडित हो रहे,
पाखियों के नीड़ उजड़े
विपिन के दुख क्या कहे,
मूल सारे गुम हुए अब मानवी अतिचार से
थक गए अहिराज अब तो त्रस्त महि के भार से |
अनगिनत हैं जख्म भू पर
वैद्य शल्य न कर सके ,
हम लगाएं वृक्ष मरहम
घाव को कुछ भर सकें ,
शेष रब सर्जन करेंगे युग कल्प उपचार से
थक गए अहिराज अब तो त्रस्त महि के भार से |
**************************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

साहित्यश्री-2//5//चोवा राम "बादल"

विषय----- बेजा कब्जा
----------------------------------------------
बेजा कब्जा हो चुका, बचे न अब मैदान ।
गांव की नार शौच को,कित जावें श्रीमान ।
कित जावें श्रीमान ,इक कमरे का घरौंदा ।
शौचालय की बात , बड़े घाटे का सौदा ।
कह " बादल" बौराय ,लईकन खेलै छज्जा ।
पट्टा दे सरकार , करावत बेजा कब्ज़ा ।
(चोवा राम "बादल")

साहित्यश्री-2//4//गुमान प्रसाद साहू

विषय - बेजाकब्जा(अतिक्रमण)
गांव शहर सभी जगह में, बेजाकब्जा का डेरा है।
अपने स्वार्थ के चलते लोग, 
मंदिरों को भी घेरा है।
नदी नालो की जमीने, जानवरों के चारागाह की।
काट रहे हैं जंगल को भी, बिना किसी परवाह की।
सभी मे कब्जा किये बैठे हैं लोग, कहते हैं कि ये मेरा है।
वर्तमान में बची नहीं है जमीने, बस फाइलों में ही नक्शा है।
जगह हथियाने वालो ने तो, शमशान को भी नहीं बक्शा है।
अतिक्रमण के भेंट चढ़ रहा, आज पूरा देश मेरा है।
अतिक्रमण के मार सभी जगह, शहरीकरण का हवाला है।
सभी जगहो पर हो रहा बस, पैसे वालो का बोलबाला है।
बेजाकब्जा के जमीनों पर, सब नाम अपना उकेरा हैं।
गांव शहर सभी जगहो पर, बेजाकब्जा का डेरा है।
रचना :- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम:-समोदा (महानदी)
मोबा.:- 9977313968
जिला:-रायपुर छग

साहित्यश्री-2//3//दिलीप कुमार वर्मा

अतिक्रमण (बेजा कब्जा)
ये उस दिन की बात है,जब हम छोटे छोटे थे।
गाँव गली भाठा टिकरा,बहुत बड़े और मोटे थे।।
घुमा फिरा खेला हमने,लम्बी दौड़ लगाई है।
बेजा कब्जा का ये राक्षस,जाने कहाँ से आई है।।
पहले घर-घर गायें होतीं,अब तो सारे बेच रहे।
चारा गाह तो खत्म हो गया,अतिक्रमण में देख रहे।।
बच्चे अब घर में रहते हैं,बड़े न बाहर जाते हैं।
कभी जो बाहर चले गए तो,उसी पाँव घर आते हैं।।
भाठा अब तो कहीं न दिखता,भर्री कहीं न दिखता है।
गली-गली अब सकरी हो गई,ताल तलैया बिकता है।।
शासन सबको पट्टे देती,सुविधा भी भरपूर है।
कुर्सी का सब खेल है साथी,जनता भी मजबूर है।।
क्या गाँव क्या शहर कहोगे,क्या राज्य क्या देश।
अतिक्रमण की भेट चढ़ गई,बदल गया परिवेश।।
अब ओ दिन भी आये गा,जब नजर बन्द हो जाएंगे।
मोबाईल में मिला करेंगे,घर में जीवन बिताएंगे।।
न सुधरा है न सुधरे गा,अपना भारत देश।
पग रखने को जमी न होगी,शायद यही सन्देश।।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार

साहित्यश्री-2//2//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

अतिक्रमण
-------------------------------------
अतिक्रमण जंगल में देखो,
अतिक्रमण नदी-नालों में।
अतिक्रमण राहों में देखो।
अतिक्रमण खेत मैदानों में।
इंच - इंच में इंसान,
ईमारत बना रहे है।
खाली जमीं को कुतर-कुतर,
दीमक सी खा रहे है।
लालची हो गया है इंसान,
ज्यादा की चाह में।
लाखो घर दुकान देखो,
बना लिये हैं राह में।
चलने को भी जगह,
कहाँ शेष बचीं है आज?
कल-कारखाने रोज बने,
बन रहे है होटल लाज।
जमीन के अंदर घर,
जमीन के ऊपर घर।
राह में गाड़ी गुजरती,
देखो आज छूकर घर।
खेतो की गत बिगड़ रहे है।
आबादी तेजी से बढ़ रहे है।
लूटकर धरती की अस्मत,
चाँद-तारो में चढ़ रहे है।
किस किस में करेगा कब्जा,
जाने उसकी नियत कैसी?
शैतान बन बैठा इंसान,
कर रहे है जग की ऐसी-तैसी।
चलते बुल्डोजर आय दिन,
अतिक्रमण तोड़ने को।
तब भी इंसान लगा हुआ है,
इंच - इंच जोड़ने को।
देखो पर निकल आये है,
दिवार दिन ब दिन बढ़ रहे है।
दिवारो की आड़ में इंसान,
बेधड़क अतिक्रमण कर रहे है।
निकल घर से,
भ्रमण में।
देख गाँव - शहर,
लिप्त है अतिक्रमण में।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-2//1//ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

विषय -बेजकब्जा
~~~~~~~~~
गांव गांव,शहर शहर में बेजकब्जा देखो।
बड़े बड़े रसूखदारों की रुतबा देखो।
कहा गई चारागाह, नदी नाला दोस्तों
इन जमातों की बड़ी बड़ी मकाँ देखो।
सरकारी फ़ाईलो की रकबा देखलो
वर्तमान में जमीन कितना बचा देखो।
पैसा फेको तमाशा देखो "ज्ञानु"
होती राजनीती की पनाह देखो।
'जिनकी लाठी उनकी भैस' हकीकत है
जहाँ पाये वहॉ महल आलिशा देखो।
रोती है आँखों के संग मेरा कलम भी
लाचार,बेबस,मजबूर गरीब जनता देखो।
ज्ञानु मानिकपुरी "दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

//साहित्य-श्री-1 का परिणाम//

छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण साहित्य समूह द्वारा प्रथम बार आयोजित हिन्दी कविताओं की प्रतियोगिता ‘साहित्य श्री-1‘ के विषय ‘प्रथम पूज्य गणेश‘ पर कुल तेरह रचनायें प्राप्तु हुई । प्रथम अवसर पर 13 रचना उत्साह वर्धन के लिये पर्याप्त है । इस विषय पर प्राप्त रचनाओं के गुणवत्ता के आधार पर प्रथम दो रचनाओं का आकलन किया गया । इस आधार ‘साहीत्य-श्री-1‘ के विजेतायें हैं-
प्रथम-श्रीमती आशा देशमुख
द्वितीय- श्री चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
प्रशंसनीय रचनाकार- कन्हैया साहू ‘अमित‘
सभी विजेताओं को छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण की ओर से हार्दिक बधाई

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//14//*कन्हैया साहू "अमित" *

*साहित्य श्री~1 हेतु प्रयास*
*************@*************
हे गजानन्द ,गौरीसुत गणनायक।
सुर मुनि जन वंदित अधिनायक।।
दीन हीन के तुम सर्वशक्ति,
भक्तों के तुम हो प्रथम भक्ति।
उमाशंकर के तुम लाल न्यारे,
रिद्धि सिद्धि के तुम प्राण प्यारे।।
बल,बुद्धि,विद्या सकल सुख दायक।
हे गजानन्द ,गौरीसुत गणनायक।।१
प्रथम निमंत्रण गिरजापति नंदन,
कर जोङ करते हम अभिनंदन।
सफल करो सकल काज हमारे,
शिवशंकरसुत शुभगुण नाम तुम्हारे।।
विघ्नहर्ता,मंगलकर्ता रहो सदा सहायक।
हे गजानन्द ,गौरीसुत गणनायक।।२
जय जन हितकारी,हे मंगलकारी,
कृपासिन्धु तुम भक्तन उपकारी।
करो निवास देवा "अमित" हियप्रदेश,
संताप सारे सिमटे,मिटे मेरा क्लेश।।
रुप अनूप प्रभु मन मन्दिर लायक।
हे गजानन्द ,गौरीसुत गणनायक।।३
सुर मुनि जन वंदित अधिनायक।।
हे गजानन्द ..........................
*************@*************
*कन्हैया साहू "अमित" *
शिक्षक~भाटापारा
जिला~बलौदाबाजार (छ.ग.)
*************©®*********

शनिवार, 17 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//13//महेश मलंग

साहित्य श्री हेतु एक मुक्तक
वरद विनायक मंगलमूर्ती मंगल करो गणेश |
विकट विघ्न को हरने वाले संकट हरो गणेश ||
दया तु रखना सब संभव है वांछा बचे ना शेष ,
गजानना तु नव निधियो से हमको वरो गणेश || 
महेश मलंग Pandariya

साहित्यश्री-1//12//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

प्रथम पूज्य गणेश जी
---------------------------------
हे ! प्रथम पूज्य गणेश जी।
जग की हालत देख जी।
अपने दुख दूर करने को,
दे रहे है औरो को क्लेश जी।
मातृ वचन निभाने को,
शीश अपने कटा दिये।
माँ - बाप चारो धाम है,
लगा परिक्रमा बता दिये।
पर ये मनचले
मन के मारे मानव,
माता - पिता को ही ,
घर से भगा दिये।
कोई कहाँ पढ़ता है?
लिखे सत लेख जी।
हे!प्रथम पूज्य गणेश जी...।
सही राह में कोई,
चल कहाँ रहे है?
उपकार करने घर से
कोई निकल कहाँ रहे है?
धन वैभव की लालच में,
लोग लगे हुए है,
सत की दीपक आखिर,
जल कहाँ रहे है?
फांस रहे है एक दूसरे को,
स्वार्थ की जाल फेक जी।
हे!प्रथम पूज्य गणेश जी....।
गली गली सब रखे आपको,
पर दिल में कोई न रख पाया।
दानवो का गुणगान करे जन,
बस भल मानुष से सक पाया।
हे!ज्ञान बुद्धि के दाता गणेश,
जग के तुम रखवार।
पीकर मोह माया का पेय जन,
भक्ति रस न चख पाया।
फंसकर मैं की जाल में,
बाँट रहे है ईर्षा द्वेष जी।
हे!प्रथम पूज्य गणेश जी........।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

बुधवार, 14 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//11//ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

"जय गणेश देवा"
~~~~~~~~~~
मंगल कर्ता,विघ्न हर्ता,जय गणेश देवा।
एक दन्ता, हे दयावन्ता,जय गणेश देवा।
चार भुजा धारी,मूषक सवारी,जय गणेश देवा।
शम्भु सुतवारी,जग बलिहारी,जय गणेश देवा।
होती पहली पूजा,और न कोई दूजा,जय गणेश देवा।
गौरी गणेशा,मेटे कलेशा,जय गणेश देवा।
प्रिय है मोदक,शोक विनाशक,जय गणेश देवा।
चढ़ाऊ फूल पान,देदो वरदान,जय गणेश देवा।
नयन दिये अंधन को,धन दिये निर्धन को,जय गणेश देवा।
स्वस्थ रखे तनको, पुत्र दिये बांझन को,जय गणेश देवा।
पहली तुझे मनाऊ,मंगल गाऊ, जय गणेश देवा।
उतारूँ आरती, 'दास' की है विनती,जय गणेश देवा।
न हो कोई बेसहारा,हो सदा भाईचारा,जय गणेश देवा।
न दुश्मनी हो,सबकी सबसे बनी हो,जय गणेश देवा।
बस इतना काम करदे,दिलो में प्यार भरदे,जय गणेश देवा।
नेक नियत इंसान करदे,माँ बाप को भगवान करदे,जय गणेश देवा।
न हो कही आतंक की कहर,आये नफरत कही न नजर,जय गणेश देवा।
शांति और अमन हो,ऐसा मेरा वतन हो,जय गणेश देवा।
ज्ञानु मानिकपुरी "दास"

रविवार, 11 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//10//आशा देशमुख

विषय ...प्रथम पूज्य गणेश
प्रार्थना सुन लो प्रभो हे अब जगत से तम हरो 
एकदंता शुभनियंता
शिवतनय गणनायका ,
शोकहर्ता भाग्यकर्ता
रिद्धि-सिद्धि प्रदायका |
कोटि रवि सम हे प्रभाकर ,
ज्ञान से हर धीं भरो |
प्रार्थना सुन लो प्रभो हे अब जगत से तम हरो |
गुणसदन हे गजबदन
शुभ शांति बुद्धिनिकेतना ,
दंडधारी शुभंकारी
प्राण मेधा चेतना ,
आदि पूजित देव देवा
स्वस्ति शुभ जग में करो |
प्रार्थना सुन लो प्रभो हे अब जगत से तम हरो |
सूर्यकर्णा विरद चरणा
श्री शुभम मुंदाकरम,
धूम्रलोचन भयविमोचन
भुवनपति गणनायकम,
दुःख-दुविधा राग पूरित
मनस के दूषण क्षरो |
प्रार्थना सुन लो प्रभो हे अब जगत से तम हरो |
***********************************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
छत्तीसगढ़

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//9//गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" सर्वाग्र पूज्यते गणेश "
सर्व अग्रपूज्य शिवपुत्र गणेश 
लम्बोदर गजानन विघ्नहंता लोकेश,
दीर्घकर्ण सुक्ष्मदर्शी निष्पक्ष विचारक
चतूर्भूज गदाधारी महावली विनायक।
सिन्दुर शोभाकर मोदकप्रिय वीरेश
मूसकसवार मातरीभक्त बक्रतुण्ड ब्रह्मेश।
धीरगति स्थीरबुद्द्हि एकदन्त देवेन्द्र
सिद्धि हेतु पूजनरत ब्रह्मा विष्णु महेन्द्र।
अमंगलहारी शंख चक्रधारी हेरम्ब
सर्व जातीधर्म समन्वयक सर्वाग्र प्रणम्य॥
*****
( गोपाल चन्द्र मुखर्जी
४४,सूरजमुखी
राजकिशोर नगर
बिलासपुर (छ.ग.)
मोबाइल नं. ०९८२७१८६७४४ )

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//8//चैतन्य जितेन्द्र तिवारी

...हे गणपती महराज...........
""""""""""""""*"""""""*""""""""""""
प्रथम पूजन तुमको ही हे गणपती महाराज
प्रथम निमंत्रण आपको हे पार्वती गणराज
एक दन्त वक्रतुण्ड सुपकर्ण गज महाकाय
शिवसुताय गजानन हे पार्वती प्रिय पुत्राय
मंगलकरण विघ्नहरण हे गौरीसुत गणेशाय
ऋद्धि सिद्धि संग विराजौ हे शैलप्रिय पुत्राय
निर्विघ्न करौ सब कार्य हे विघ्नेश्वर दो वरदाय
अरज हमरी सब पूर्ण हो हे गजवदन लम्बोदराय
भादो मॉस की शुक्ल चतुर्थी जनम भयो महाराज
शिवशक्ति उर आनंद बसे जब आप भयो गणराज
अपने भक्त दुखियन के दुःख हरौ सब सुंदर आज
मनवांछित मनोकामना पूर्ण करौ सब सुंदर काज
CR
चैतन्य जितेन्द्र तिवारी
थान खम्हरिया(बेमेतरा)

साहित्यश्री-1//7//आचार्य तोषण

जय गणेश गणपति गणराज होती सर्वप्रथम पूजा
बल बुद्धि ज्ञान दाता तुम नहीं कोई जग मे दूजा
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चढे पान फूल फल तुम पर खाते लड्डू मोतीचूर
आस पूर्ण हो सब भक्तों के सबके दुख करते दूर
----------------------------------------------
पार्वती के लाडले तुम शिव शंकर के दुलारे
रिद्धि सिद्धि संगिनी शुभ लाभ आंखों के तारे
----------------------–-–---------------------
कर प्रदक्षिणा माता पिता के प्रथम पूजाये जग में
आने ना देना संकट कभी भगवन भक्तों के मग में
–―------------------–----------------------
भाव न जानू भक्ति न जानू फिर भी तुम्हें मनाऊं
सेवा करूं निशदिन देवा चरणों पे मांथ नवाऊं
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आचार्य तोषण
धनगांव डौंडीलोहारा
बालोद छत्तीसगढ़
४९१७७१
चलितभाष
९६१७५८९६६७

साहित्यश्री-1//6//हेमलाल साहू

विषय--प्रथम पूज्य गणेश
हे गणपति जी आपको, मेरा प्रथम प्रणाम।
भक्तन के संकट हरो, सफल करो सब काम।
सफल करो सब काम, आपके शरणे आये।
रिद्धि सिद्धि के संग, हमारे मन को भाये।।
दो प्रभु सबको ज्ञान, रहै न माया प्रभु जी।
जग में पूजे प्रथम, आपको हे गणपति जी।।


सबका हर्ता विघ्न है, मंगल करते काज।
शरण सभी आय है, मेरे प्रभु गणराज।।
मेरे प्रभु गणराज, करै हम अर्पण तन मन 
मनमें है प्रभु आस, आपका पाये दर्शन।।
पार्वती के लाल, पूत हो प्रभु शंकर का।
मूसक वाहन साथ, विघ्न है हर्ता सबका।।
-हेमलाल साहू
ग्राम - गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़ जिला बेमेतरा
(छत्तीसगढ़) मो.9907737593

सोमवार, 5 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//5//लक्ष्मी नारायण लहरे

विषय- ‘प्रथम पूज्य गणेश‘
------------------------
मंगलकर्ता ,विघ्नहर्ता प्रथम पूज्य गणेश
आरती उतारूँ ,मंगल गीत गाँउ जय हो ... गणेशा जी
घर -आंगन में आयी खुशियाँ
फूलो से सजी है थालियाँ
सुबह- शाम बज बजे रहे विजय घंट
सुर -ताल में झूम रहे भक्त लेके तुम्हारा नाम ....बोलो श्री गणेशा
दुखियो के दुःखहर्ता ,मंगलकर्ता प्रथम पूज्य गणेश
आरती उतारूँ ,मंगल गीत गाँउ जय हो ... गणेशा जी
मूरत प्यारी ,सुरत प्यारी
एक दन्त मुसे की है सवारी
विघ्नहर्ता ,मंगलकर्ता- दुखियो के दुःखहर्ता प्रथम पूज्य गणेश
आरती उतारूँ ,मंगल गीत गाँउ जय हो ... गणेशा जी
दिन - दुखियो की बिगड़ी बना दो
अज्ञानी को ज्ञानी बना दो
जो कोई पूजे
सच्ची मन से
उनकी इक्छा होती पूरन
हे मंगलकारी विध्नहर्ता सुन लो पुकार
दुखियो के दुःखहर्ता
सबकी नैया पार लगा दो
जो भटके है राह दिखादो
गौरी -शंकर के लाला जय हो ....गणेशा जी...
मंगलकर्ता ,विघ्नहर्ता प्रथम पूज्य गणेश
आरती उतारूँ ,मंगल गीत गाँउ जय हो ... गणेशा जी
घर -आंगन में आयी खुशियाँ
फूलो से सजी है थालियाँ
सुबह- शाम बज बजे रहे विजय घंट
सुर -ताल में झूम रहे भक्त लेके तुम्हारा नाम ....बोलो श्री गणेशा
० लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल, कोसीर सारंगगढ़

साहित्यश्री-1//4//दिलीप वर्मा

विषय--प्रथम पूज्य गणेश
भोले का ओ लाल है,प्रथम पूज्य गणेश।
श्रद्धा से पूजन करो,काटे सभी कलेश।। 
काटे सभी कलेश,कि ओ है गजमुख धारी।
लम्बोदर गणनायक,पूजन प्रथम अधिकारी।।
इसके नाम हजार,विघ्न के हरता बोले।
मोदक इनको भाय,पिता शिव बम बम भोले।।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाजार

शनिवार, 3 सितंबर 2016

साहित्यश्री-1//3//गुमान प्रसाद साहू

करते हैं वंदन हम सब तुम्हारे,
हे प्रथम पूज्य गणेश।
आये हैं शरण में हाथ पसारे,
काटो हमारे सब क्लेष।
शिव पार्वती के तुम हो दूलारे,
करते हो मूषक सवारी।
एकदंत तुम गज आनन धारे,
मोदक है तुमको प्यारी।
लम्बोदर तुम हो मंगलकर्ता,
कहलाते हो तुम्ही विघ्नेश।
करते हैं वंदन हम सब तुम्हारे,
हे प्रथम पूज्य गणेश।
सबके भाग्य के तुम हो विधाता,
रिद्धी सिद्धी के तुम स्वामी हो।
बल और बुद्धि के तुम हो दाता,
हम अज्ञानी तुम अंतर्यामी हो।
सबसे पहले पूजते है तुमको,
देवो में तुम हो विशेष।
करते हैं वंदन हम सब तुम्हारे,
हे प्रथम पूज्य गणेश।
बढ़ रहा है पाप आज धरा पर,
बढ़ रहे है दूराचारी।
बोझिल होती जा रही ये धरती,
पापीयो से देवा भारी।
लेके जनम फिर से आ जाओ,
बदलो इसका परिवेश।
करते हैं वंदन हम सब तुम्हारे,
हे प्रथम पूज्य गणेश।
जिसने जो मांगा उसने वो पाया,
शरण में तुम्हारे आके।
हम भी आये है चरणो में तुम्हारे,
देवा झोलीया फैलाके।
भवसागर से नैय्या पार लगादो,
रहे मन मे न कोई क्लेष।
करते हैं वंदन हम सब तुम्हारे,
हे प्रथम पूज्य गणेश।
रचना :- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम-समोदा ( महानदी )
मो. :- 9977313968
जिला-रायपुर छग

साहित्यश्री-1//2//चोवा राम वर्मा "बादल"

प्रथम पूज्य श्री गणेश
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प्रथम पूज्य श्री गणेश तुम्हारे,चरणों में शीश झुकाता हूँ।
शब्द-सुमन श्रद्धा में पिरो,भावों का हार पहनाता हूँ।
स्वीकारो हे विघ्नहर्ता,शुभ कर्ता,
सर्व श्री प्रदाता ।
त्रिलोकी शिव शंभु-जगदम्बा,
जिनके पितु अरु माता ।
आओ विराजो हृदय आसन में,करजोर तुम्हे बुलाता हूँ।
प्रथम पूज्य श्री गणेश तुम्हारे,चरणों में शीश झुकाता हूँ ।1।
अज्ञानी हूँ, अभिमानी निर्धन हूँ,
पर सेवा का जज्बा है ।
मेरे घर आँगन में स्वामी ,
दुःख दर्दों का कब्जा है ।
क्षमा करो हे अंतर्यामी , मैं मुर्ख तुम्हें समझाता हूँ
प्रथम पूज्य श्री गणेश तुम्हारे,चरणों में शीश झुकाता हूँ।।2।।
मन-मूषक का करो सवारी,
चित चंचल है बहती वारि ।
हे गजवदन, उदर है भारी ।
सुना हूँ तुम्हें मोदक है प्यारी ।
अपने जीवन के मधुर पलों का, छप्पन भोग लगाता हूँ।
प्रथम पूज्य श्री गणेश तुम्हारे,चरणों में शीश झुकाता हूँ ।।।3 ।।।
हो प्रसन्न हे ज्ञान के दाता,
सब के भाग्य विधाता ।
देखो नक्सल आतंक से पीड़ित,
है प्यारी भारत माता ।
स्वर्ग धरा पर असुरों का डेरा,कश्मीर तुम्हें दिखलाता हूँ ।।।।4 ।।।।
प्रथम पूज्य श्री गणेश तुम्हारे,चरणों में शीश झुकाता हूँ ।4
("साहित्य श्री" हेतु छग साहित्य दर्पण में समर्पित )
रचनाकार-----चोवा राम वर्मा "बादल"
हथबंद

साहित्यश्री-1//1//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

शीर्षक -प्रथम पूज्य गणेश ...
श्री गणेश जी प्रथम पूज्य कहलाते है
तभी तो देवों में,सबसे पहले पूजे जाते है
आगमन उनका, शुभफल दायक है
घर में अपने भी आने को,उन्हें मना लेना ....
सबको भाई चारा का ,सन्देश देते है
माता पिता की सेवा का ,उपदेश देते है
माँगना प्रभु से,सबके लिये सुख शांति
कहना ,हमारा दुःख कलेश मिटा देना ....
आँखो में ,उनका सुंदर मुखड़ा बसा लेना
फिर दिल से,उनका जयकारा लगा लेना
सब कष्टो को, पल में हर लेंगे विघ्नहर्ता
बस उनको,अपना सारा दुखड़ा सुना देना ..
वो तो भक्तो के मन की हर बात, जानते है
सब रहते है बेचैन उनसे मिलने को, जानते है
वो दौड़े चले आते है ,हरबार भक्तो के घर
तुम अपने घर को,उनके लिए सजा लेना..
गणपति जी तो, रिद्धि सिद्धि के दाता है
बड़े ही ज्ञानी है,सब वेदों के ये ज्ञाता है
मिलजुल कर सब आरती करना उनकी
घण्टा ध्वनि प्यारी, साथ शंख बजा देना ...
बड़े भोले है ,नही जानते वो सख्ती करना
जितनी शक्ति हो ,तुम उतनी भक्ति करना
बस श्रद्धा से, जो हो वो तुम अर्पण करना
मोदक और लड्डू का भोग लगा देना...
अपनी ख़ुशी के लिए उन्हें हर साल बुलाते हो
गणेश चतुर्थी पर सब उन्हें घर घर बिठाते हो
बसआस्था और विश्वास कभी ना खोना तुम
भले आखिर में उनकी मूर्ति पानी में बहा देना..
रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डीआर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग )

हिन्दी कविताओं की प्रतियोगिता-साहित्य श्री -1

//साहित्य श्री -1//
(हिन्दी कविताओं की प्रतियोगिता)
अवधि-1 सितम्बर 16 से 15 सितम्बर तक
विषय- ‘प्रथम पूज्य गणेश‘
विधा - विधा रहित, यदि कोई रचनाकार किसी विधा में लिखना चाहे तो स्वतंत्र है बाध्यता नही है ।
संचालक- श्री सुनिल शर्मा
निर्णायक-छत्तीसगढ़ मंच संचालक समीति
नियम-प्रतिभागी रचना केवल छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण में पोस्ट होनी चाहिये । प्रतियोगिता अवधि में यह रचना अन्यत्र प्रकाशित नही होना चाहिये ।
रचना के ऊपर ‘साहित्य श्री-1‘‘ हेतु रचना लिखना आवश्यक होगा ।
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‘साहित्य श्री‘ हिन्दी कविताओं का प्रतियोगिता
उद्देश्य -1. हिन्दी काव्य के विभिन्न विधाओ की जानकारी, उस विधा में रचना, एवं रचना में कसावट लाना । ‘सिखो और सीखाओ‘ के ध्येय वाक्य से एक दूसरे के सहयोग से अपने लेखन कर्म को सार्थक करना ।
2. विशेष कर छत्तीसगढ़ के नवरचकारो को भाव अभिव्यक्ति हेतु मंच उपलब्ध कराना ।
3. प्रदत्त विषय में लेखन क्षमता विकसित करना ।
प्रारूप-प्रत्येक माह दो आयोजन 1. 1 से 15 तारीख तक विषय/शिर्षक आधारित 2. 16 तारीख से 30 तारीख तक चित्र या काव्यांश आधारित ।
प्राप्त रचनाओं को वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकारों से मूल्यांकन करा कर श्रेष्ठता तय कर श्रेष्ठ रचना को ‘साहित्यश्री‘ के मानक उपाधी से सम्मान करना ।