सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-4//9//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

'उजाले की ओर हर कदम हो'
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मुश्किल हो राहे फिरभी चलना होगा
अंधेरों में बनके दिया जलना होगा।
मत हारना तू! ऐ मुसाफिर
हर दर्द को चुपचाप सहना होगा।
दिल मेरा बरसों से प्यासा है
मिल जाये उम्मीद की बूँद आशा है।
लड़ जाऊ मैं भी अंधेरो से
'उजाले की आस' बस जरा सा है।
हवा बनकर हर राह चलना होगा
बिछड़े हुये लोगों से मिलना होगा।मत.....
जिंदगी की कितनी अजीबो रंग है
लोगों का भी अपना-अपना ढंग है।
मिलना बिछड़ना यहाँ रीत है'प्यारे'
हर पल जिंदगी एक जंग है।
यहां हर मौसम में ढलना होगा
उसी का दुनिया अपना होगा।मत......
जिंदगी में खुशियां हो चाहे गम हो
कितनी भी। घोर चाहे तम हो।
कुछ हासिल करना चाहते हो गर"ज्ञानु"
'उजाले की ओर हर कदम हो'
जिंदगी की हर पहलु को समझना होगा
जिंदगी जीने के लिए पल पल मरना होगा।मत..
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

साहित्यश्री-4//8//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

💥एक कदम उजाले की ओर💥
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न देख पाँव के,
छाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
चलकर ही हासिल होगी,
खुशियाँ जीवन में,
फिर क्यों झाँकता है,
किस्मत के आले की ओर।
उजाला अच्छाई का,
दुर्गम पथ है।
तम बुराई का,
सुगम रथ है।
एक जीवन खुशियों से भरती है।
एक खुशियों में ही छेद करती है।
फिर क्यों जा रहे हो,
तम के जाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
तिमिर पथ भी जगमग होगी।
जब उजाले में पग होगी।
राह में आएगीं रुकावटें बहुत,
चोर-उचक्का और ठग होगी।
लगन की चाबी को घुमा,
खुशियाँ रूपी ताले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
कार्तिक अमावस की,दिवाली देख लो।
चंद दीयों में रौशन,रात काली देख लो।
ऐसी बरसी माँ लक्ष्मी ,की कृपा,
भर गये हाथ , खाली देख लो।
प्रेम का दीपक दिल में जला,
न भाग बरछी-भाले की ओर।
बढ़ चल एक कदम,
उजाले की ओर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-4//7//सुनिल शर्मा"नील"

"एक कदम उजाले की ओर"
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"तम" को "श्रम" से हराकर,तिरंगा
लहर-लहर लहराते है
"उद्यम" के महामंत्र से,भारत को
विश्वगुरु बनाते है
असीमित ऊर्जा है हममें,आओ
पहचाने इसे
उजाले की ओर चलो एक कदम
बढ़ाते है
कहीं बर्बाद होता भोजन,कहीं लोग
भूखे सो जाते है
ऐसे असमानता के रहते भला,किस
विकास पर इतराते है
इस दीवाली शांत कर भूखों की
क्षुधा को
प्रकाश में दीए के चलो "भूख"
को जलाते है
"बेटियाँ" आज भी भीड़ में निकलने
से घबराती है
कितनी बेटियों की अस्मत हर रोज
लूटी जाती है
करके दुशासन का वध,हराकर कौरव
सेना को
समाज में नारी को निर्भयतापूर्वक
जीना सिखातें है
स्वार्थ में अंधे होकर हमने स्वयं पर ही
वार किया
नष्ट किया जल,जंगल और जमीन को
जीवों का संहार किया
इससे पहले पूर्णतः नष्ट हो जाए
प्यारी प्रकृति
चलो नारा "सहअस्तित्व" का जन-जन
को सिखातें है
किस बात की डिग्रियाँ जब तक देश में
अशिक्षा का नाम है
अंधविश्वास और कुरीतियों के कारण
राष्ट्र होता बदनाम है
हर कोने तक प्रकाशित हो शिक्षा का
दिव्य प्रकाश
मिलकर परस्पर चलो ऐसा "दिनकर"
उगाते है
हमारे सुकून की खातिर जो सीमा पर
प्राण गंवातें है
देश के कुछ आस्तीन फिर भी जिनका
हौंसला गिराते है
बनकर संबल ऐसे माँ भारती के
सपूतों का
आतंकवादियों को चलो उनकी
औकात बताते है
स्वच्छता का भारत के हर घर में
संस्कार हो
स्वस्थ रहे समाज मेरा न कोई इसमें
विकार हो
भाव ये प्रतिबद्ध होकर दौड़े हर
हृदय में
चलो मिलकर एक नया "स्वच्छ
भारत बनाते है|
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
28/10/2016
Copyright

साहित्यश्री-4//6// गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" एक कदम उजाले की ओर "
जागरे, मन जागरे,
नई सुबह की ओर कदम राख रे!
पराधीनता के अक्टपाश से
मुक्त होने उठ रे।
गर्जन देशप्रेमी सेनानी का
कदम कदम बाढाते जा,
न​ई संकल्प लेते जा
बेटी नारी बचाते जा। 
मनाते हो परव दीपान्विता
नवरात्री, जागराता! 
लक्ष्मी दुर्गा पूजते हो 
कन्याभ्रूण भी हत्या करते हो! 
महामाया रूठेगी 
बंशबृद्धि रुखेगी। 
अंगन में दीपक बुझेगा 
अन्धेरा छा जाएगा!
मन, एक कदम आगे आ जा
बन्ध कर नारी निर्यातन प्रतारना। 
दीप लक्ष्मी जगमगेगी
संसार उजला की ओर बढेगी॥ 
######
( गोपाल चन्द्र मुखर्जी )

साहित्यश्री-4//5//शुभम वैष्णव

क्योकि नहीं है जीवन में सिर्फ अँधेरा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
माना दुनिया में बहुत है तेरे दुश्मन।
लेकिन कुछ करने का आज बना ले मन।
मिलता किसे नहीं दुनिया में दर्द भला,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
औरों की भलाई लोग अगर करते हैं।
वो अमर होते है जब कभी भी मरते हैं।
अपना हाँथ बढ़ाने से न ऐसे घबरा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
तेरे साथ खड़ा ये सारा जमाना है।
तुमको स्वर्ग धरा को फिर से बनाना है
जितनी है हिम्मत तुझमे वो आज लगा,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
अभिमन्यु की वीरता तू करके याद निकल।
तेरा क्या है ये समझने के बाद निकल।
तेरे खातिर सभी करेंगे आज दुआ,
एक कदम और उजाले की ओर बढ़ा।
-शुभम वैष्णव

साहित्यश्री-4//4//आचार्य तोषण

"एक कदम उजाले की ओर..."
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
मंजिल देखती राह हमारी ,कब तुम कदम बढाओगे
रहना है खरहा बनकर या, कच्छप की दौड़ लगाओगे
त्याग निद्रा आलस की ,जगा रही दिनकर की भोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
हार न माने चींटी कभी जब, अपनी कदम बढाती है
कदम बढाए कर्मपथ पर ,नीत मंजिल को पा जाती है
उत्साह जगाकर राह बनाए, बांधे मन साहस की डोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
दीपों की है अवली सजी ,द्वार द्वार हो रहे मंगलाचार
नवप्रकाश है नवप्रभात है ,यह दीपावली का त्यौहार
समता ममता भाव एक हो, आओ मनाएं सब पुर जोर
उडते चले उन्मुक्त गगन में ,चीर बादल काले की छोर
संग बढाएँ दृढ़संकल्पों से ,एक कदम उजाले की ओर
©®
आचार्य तोषण ,धनगांव डौंडीलोहारा,बालोद
छ. ग.४९१७७१

साहित्यश्री-4//3//दिलीप कुमार वर्मा

""एक कदम उजाले की ओर""
चलो घर-घर दीप जलाएं,
कोने-कोने को चमकाएं। 
प्रेम भरा अमृत बरसा कर
घर आँगन सब का महकाएं।
रहे न कोई कमजोर
एक कदम उजाले की ओर। ।1।
चलो सदा नेकी कर जाएं
भटके को हम राह दिखाएँ ।
मानवता का बन मिशाल हम
हाँथ पकड़ मंजिल पहुंचाए।
भाई चारे का दौर
एक कदम उजाले की ओर। ।2।
झोपड़ पट्टी कहीं दिखे न
दुखिया हमसे कहीं छिपे न
हर पंगु का पैर बने हम
पग हमारा कहीं रुके न।
तिमिर न हो घनघोर
एक कदम उजाले की ओर। ।3।
चारो तरफ खुशियाँ बगराएं
बच्चों में हम प्यार लुटाएं
अपनों का एहसास दिलाकर
दया मया सब में बरसाएं।
खुशियों का हो शोर
एक कदम उजाले की ओर। ।4।
हर एक घर में चंदा चमके
घर-घर में अब सूरज दमके
बिछे चाँदनी आँगन-आँगन
सुबह शाम घर खुशियाँ खनके
सुंदर सा हो भोर
एक कदम उजाले की ओर। ।5।
कहीं न कोई भिखारी होगा
चलने को न कटारी होगा
हर कोई अब सांथ रहेंगे ।
कहीं न अब अंधियारी होगा
गूंजे नभ में शोर
एक कदम उजाले की ओर। ।6।
जहां कोई न भूखा होगा
देश कभी न सुखा होगा
मेहनत की जो राह पकड़ लें
बात कभी न झूठा होगा।
उजियारा हो अंतिम छोर
एक कदम उजाले की ओर। ।7।
चलो स्वच्छता अलख जगाएं
जन-जन को हम कह समझाएं
शौचालय की राह पकड़ कर
सुंदर भारत देश बनाएं।
रखें स्वच्छ सब ओर
एक कदम उजाले की ओर। ।8।
दिलीप कहे ये बात पुरानी
घटी है घटना, नहीं कहानी
एक अकेला तोड़ पहाड़ी
करी सुगम ओ राह दुखानी ।
साहस था पुर जोर
एक कदम उजाले की ओर। ।9।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाजार
9926170342

साहित्यश्री-4//2//चोवा राम वर्मा "बादल "

उजाले की ओर --(आह्वान)
सत्पथ के लिए होकर विकल
तोड़ कारा तम का,बाहर निकल ।
मचल मचल कर अचल ध्येय 
क्यों होगा विष तेरा पाथेय ।
दिखा पूर्ण दमखम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर। 1।
दिनकर चन्द्र सितारे
जुगनू भी नही हारे ।
देता संदेश यही दीपक
परोपकार करो भरसक ।
त्याग अहम, बोलो हम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर ।2 ।
चिंगारी भर चिंतन में ,
देश प्रेम अंकित कर मन में ।
भेदभाव के तक्षक का,
भाईचारे के भक्षक का ।
फण कुचल निकालो दम
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर । 3 ।
ना दीन बनें ना हिन बनें ,
स्वाभिमान का शौकीन बनें ।
वन्दनीय फक्कड़ फकीर ,
रहीम सूर तुलसी कबीर ।
क्षत्रपति से हैं क्या कम ?
बढ़ा एक कदम
उजाले की ओर । 4 ।
श्रम सीकर से शोभित भाल ,
ऋजुपथ गामी सिंहवत चाल ।
मृदु मुस्कान-फुलझड़ी झरे ,
जगमग दीवाली उमंग भरे ।
होगा सत्यम शिवम् सुंदरम
बढ़ा एक कदम
उजाले। की ओर ।
रचनाकार---चोवा राम वर्मा "बादल "
हथबंद

साहित्यश्री-4//1//राजेश कुमार निषाद

।। एक कदम उजाले की ओर ।।
जितनी भीड़ बड़ रही है जमाने में
लोग उतने ही अकेले होते जा रहे है।
इस दुनिया के लोगो को कौन समझायें
सारे खिलौना छोड़कर जज्बातों से खेले जा रहे है।
इन सबसे तुम दूर रहो ना देखो मुड़कर पीछे की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
तुम स्वर्ग का सपना छोड़ दो
नर्क से अपना नाता तोड़ दो।
पाप पुण्य का लेखा जोखा तो ईश्वर का है
अपने सारे कर्म कुदरत पर छोड़ दो।
मन में ना रखो कोई भावना जो कर दे आपको कमजोर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
राहों में कितने भी मुश्किल हो
पर तुम निकल जाओगे।
कितने भी ठोकर खा लो चाहे
पर तुम सम्भल जाओगे।
ये अँधेरा है जो जुगनू से भी घबराता है
सदा तुम प्रकाशवान बनो न देखो सूरज की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
उम्र भर तुम्हे कोई साथ नही देगा
अकेला तुम्हे रहना है।
पथ में तुम्हारे कितने भी मुश्किलें आये
कठोर बन कर तुम्हे सहना है।
चिंताओं को दूर कर छोड़ दो उसे पीछे की ओर
निरंतर बढ़ाते जा अपना एक कदम उजाले की ओर।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( समोदा )
9713872983

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

//साहित्य श्री-3 का परिणाम//

‘साहित्य श्री-3‘ ‘जय माता दी‘ विषय पर आयोजित किया गया जिसमें 10 रचनाकार मित्र हिस्सा लिये । सभी रचनाकारों का प्रयास सराहनीय रहा । इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार । प्राप्त रचनाओं में भाव, शिल्प और दिये गये विषय के साथ न्याय संगतता के आधार पर ‘श्रीमती आशा देशमुख‘ को ‘साहित्य श्री ‘ से सम्मानित किया जा रहा है ।


आदरणीया श्रीमती आशा देशमुख को छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच की ओर से कोटिश बधाई ।

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-3//10//आशा देशमुख

विषय __जय माता दी
जय माता दी जय माता दी
दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ,
हाँथ जोर सब भक्त खड़े हैं ,
गूँज रहे जयकारे माँ |
आदिशक्ति हे मातु अम्बिके ,
अजा अनंता कल्याणी ,
माया विद्या उमा अपर्णा ,
कामाक्षा हे शिवरानी |
वेद ऋचाएँ मंगल गाएं ,आरत साँझ सकारे माँ |
जय माता दी जय माता दी,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
अष्टभुजी पर्वतनिवासिनी
शैलसुता ज्ञाना गौरी ,
मातंगी वनदुर्गा चित्रा
युवती प्रौढ़ा कैशोरी |
बहुरूपा हे मंगलकरनी ,मुदिता दृष्टि निहारे माँ |
जय माता दी जय माता दी ,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
शूल धारणी पाप नाशनी
कालि कराली विकराली ,
त्रिनेत्रा वाराही पाटला
रौद्रमुखी हे बलशाली |
असुरमर्दिनी भवभयहरणी ,भक्तो के दुख टारे माँ |
जय माता दी जय माता दी ,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
****************************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
13 -10-2016 ....गुरुवार

साहित्यश्री-3//9//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

****जय माता दी*****
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पी ले माता रानी की,
भक्ति का रस घोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी"बोलकर।
न पड़ मोह - माया में।
न जड़ ताला काया में।
आधार बना माँ भवानी को।
दिन गुजार उनकी छाया में।
न दिल दुखा किसी का,
बोल बानी तोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी" बोलकर।
ह्रदय में अपने, बसाले माँ को।
रोते को हँसाकर,हँसाले माँ को।
क्यों फांसते हो छल से किसी को,
अपनी भक्ति में फंसाले माँ को।
तिनका - तिनका तज माया का,
बस माँ की भक्ति का मोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
सुम्भ -निसुम्भ, चण्ड-मुण्ड,
है महिषासुर घाती माँ।
भैरव लँगुरे द्वार खड़े,
भक्तन काज बनाती माँ।
खाली झोली भरती माँ,
आशीष देती दिल खोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
दर्शन की लगन लागी हो।
मन भक्ति का आदी हो।
जीवन सफल हो जायेगा,
मुँह में "जय माता दी" हो।
माँ की शरण में पड़े जीतेन्द्र,
गुण गाये डोल - डोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-3//8//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

जय माता दी.....
चाहे शीतल छांव हो या फिर खिलती धुप में
कण कण में विराजित है माँ दुर्गा कई रूप में
तेरी हर मुराद पूरी होगी यहां,मांग ले बन्दे
बस जयकारा लगा "जय माता दी" बोल...
फिक्र क्यों करता है इस नश्वर काया की
बेड़ियों में क्यों जकड़ा है मोह माया की
धन्य हो जायेगा,जो माँ के दर्शन पायेगा
ध्यान लगा बस,अंतर्मन के पट खोल...
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
डूब जा भक्ति भाव में,तू सफल हो जायेगा
मन तेरा,पवित्र पावन निश्छल हो जायेगा
परमार्थ का काज कर,व्यर्थ ना गवां इसे
औरो के काम आ,ये जीवन है अनमोल....
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
माँ के दरबार में बस मांगने चला आता है
तू नई हसरत,नई मन्नत लिये चला आता है
श्रद्धा में भी,तेरा स्वार्थ छुपा कहीँ ना कहीँ
निश्वार्थ क्या किया अपने अंदर भी टटोल...
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
अरे माँ तो सबको सहारा देती है
सबको जीने का गुजारा देती है
इंसानियत का धरम पहले निभा
मानवता के तराजू में खुद को तौल....
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल....
*रचना*
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

साहित्यश्री-3//7//गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" जय माता दी "
जय माता दी जयकारा 
संतान तेरा करेगा क्या!
माँ,आप जाकर बैठी हो 
दुर्गम पर्वत पर, 
अन्धेरा गुफा में 
घनघोर गभीर जंगल में। 
चाहते है मन, तेरी दर्शण, 
खुशीभरे दिल, मन चंचल। 
भुखे - प्यासा पैर लड्खराई 
तेरी नाम ही संबल हे महामाई। 
दिए चले तेरा जयकारा
जय माता दी, जय हो माता, 
दर्शण मिलें चरण तुम्हारी 
सार्थक हो जनम हमारी॥ 
माता जी,आप ही महाचण्डी,
महालक्ष्मी,महासरस्वती। 
आप ही आदिशक्ति महामाया वैष्णवी
दशमहाविद्या करालबदना महाकाली। 
अरिहन्ती रक्षाकर्ती शिवप्रिया भैरवी 
त्रिनेत्री अस्टभूजी सन्तानस्नेही गौरी॥ 
यौवनवती तेजोमयी प्रचण्ड बलशालीनी
रणप्रिया अभया दुर्गे, दुर्गति नाशिनी, 
सर्वपाप विनाशिनी धर्म मोक्ष दयिनी। 
मनाते है संतान नवरात्री 
जागरन, जयकारा जय माता दी॥ 
*** 
(गोपाल चन्द्र मुखर्जी)

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-3//6//दिलीप

विधा---हाइकु
जय माता दी।
चलता चल
माता तुझे पुकारे
पार उतारे।
बढ़ता चल
चल माता के द्वारे ।
भाग संवारे।
कहीं न रुक
पाँव थके न तेरे।
घोर अँधेरे।
चाहे कंकड़
पत्थर राह पड़ी।
मत घबरा।
पर्वत का तू
चीरता चल सीना।
बहे पसीना।
जोर से बोलो
गूंज उठे ये वादी।
जय माता दी।
दुःख में सुख
भरपूर मिलेंगे।
भाग खिलेंगे।
जय माता दी
गूंज रही नभ में।
माँ है सब में।
दर्शन होंगे
धीरज रख मन।
लगी कतारें।
भक्त कभी न
दर से खाली जाते।
आशीष पाते।
कहता चल
माता के दरबारे।
जय माता दी।
दिलीप भी है
द्वारे माँ, फरियादी।
जय माता दी

साहित्यश्री-3,//5//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

विषय:-- जय माता दी।
जीवन पथ पर हर क्षण हर पल।
जय माता दी कहता चल।
सुबह दोपहरी सांझ रात हो।
चाहे कोई अर्जेन्ट बात हो।
सब कुछ पा जाने का दंभ हो।
या कुछ ना पाने का गम हो।
जीवन की हो कुछ अबूझ पहेली..
खोजे मिल न रहा हो हल।
जय माता दी कहता चल।
उच्छल बचपन का उमंग हो।
या यौवन जब अपना संग हो।
रोजी रोजगार की हो लाचारी।
या हो घरबार की जिम्मेदारी।
बुढ़ापे की लाठी कहीं दिखे ना..
उमर अनवरत रहा हो ढल।
जय माता दी कहता चल
जीवन पथ पर हर क्षण हर पल।
जय माता दी कहता चल।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

साहित्यश्री-3//4//राजेश कुमार निषाद

।। जय माता दी ।।
माता तुम्हें मनाने के लिए,
आये हैं तेरे जस गाने।
शरण में आये है हम तुम्हारे,
अपनी किस्मत जगाने।
हाथ जोड़ मै करूं आरती, जगत जननी माता की ।
जय बोलो जय माता की, सब बोलो जय माता दी।
सबके बिगड़ी बनाती मैय्या,
भवसागर से पार लगाने वाली है।
पापियों के नाश करके मैय्या,
जग को दुष्टों से बचाने वाली है।
करू मै सेवा सुबह शाम ऐसी भाग्यविधाता की।
जय बोलो जय माता की, सब बोलो जय माता दी।
काली चण्डी दुर्गा गौरी अनेकों तुम्हारे नाम है।
सबको शरण देने वाली तुम्हे मेरा प्रणाम है।
गुण गाऊँ मै माँ भवानी आपकी उदारता की।
जय बोलो जय माता की, सब बोलो जय माता दी।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( सामोद )
9713872983

साहित्यश्री-3//3//गुमान प्रसाद साहू

विषय - जय माता दी
शिर्षक-"जय माता दी बोलते चलो"
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
दूर करेंगी माँ शेरावाली, सब दूख दर्द को हमारे।
ऊँचे पहाड़ो में हैं बसी, मैय्या द्वार सजाये।
भक्त सभी सीढ़ियाँ चढ़के, दर्शन करने आये।
बम्लेश्वरी,दंतेश्वरी,वैष्णोदेवी, इन्ही के नाम हैं सारे।
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
बच्चें है हम सब उनके, ओ है माता हमारी।
एक बराबर सब उनके लिए, राजा रंक भिखारी।
भर देंगी माँ ज्योतावाली भक्तों, खाली झोली हमारे।
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
भक्त जनों पर पड़ा है, जब जब भी संकट भारी।
दानवों को मार गिराने, ली है मैय्या ने अवतारी।
पहाड़ा वाली की लगाते चलो, भक्तों सभी जयकारे।
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
रचना :- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम-समोदा (महानदी)
मो. :- 9977313968
जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)

साहित्यश्री-3//2//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

"जयमातादी"
~~~~~~~
थामा है हाथ जबसे, बिगड़ी बनते साज।
जो भी आया शरण में,होते पूरण काज।
होते पूरण काज,राज है महिमा माँ का।
चरणों में होते माथ, होय कभी बाल न बॉका।
जय माता दी जपू,सदा ही अपने मुखसे।
गम नही नही फ़िकर,थामा है हाथ जबसे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

साहित्यश्री-3//1//संतोष फरिकार

जय माता दी जय माता दी
सभी दोस्तो को जय माता दी
आ गया मां की नव रात्री पर्व
आ गया नव दिन नव रात
सब मीलकर बोलो जय माता दी
नव दिन से गुंजे का मां की महिमा
नव दिन गुंजे गा मां का जयकारा
सब मील कर बोलो जय माता दी
नव दिन के लिए आया है मां
नव रूप मे रहेगा मां का रूप
अलग अलग दिन मां का रूप
दुर्गा मां का रूप है नव प्रकार
सब मीलकर बोलो जय माता दी
डोगरी पाहाड़ मे निवास है मां
आपका लिला है सबसे नियारी
सब भक्त है आपके बच्चे है प्यारी
अपने बच्चो की करते हो देखभाल
करते हो मुशिबत मे रखवाली मां
सब मीलकर बोलो जय माता दी
दुर दुर से आते है मां आपका दर्शन
करने को भक्त आपके घर दुवार
दर्शन को पाके मां भुल जाते है
अपने दुख दर्द लौटते है घर दुवार
सब मीलकर बोलो जय माता दी
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#मयारू
संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
9926113995

//साहित्य-श्री-2 का परिणाम//

सादर नमस्कार

सबले पहले इस बात के लिये क्षमा चाहते हैं कि परिणाम विलंब से घोषित किया जा रहा है ।  वास्तव में नवरात्रि पर्व में व्यवस्तता के कारण समय अभाव रहा ।

साहित्य श्री 2 जिसका विषय - ‘अतिक्रमण‘ था । इस विषय पर कुल 13 रचनायें प्राप्त हुई । सभी मित्रों का प्रयास सराहनीय रहा । सभी रचनाकारों को इस प्रयास हेतु बधाई सह धन्यवाद । विषय कु गुणार्थ एवं रचना संरचना के वरियता के आधार पर साहित्य श्री 2 का यह सम्मान श्री गोपाल चन्द्र मुखर्जी दिया जाता है ।

श्री गोपाल चन्द्र मुखर्जी को छत्तीगढ़ साहित्य दर्पण की ओर से हार्दिक बधाई ।

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-2//13//हितेश तिवारी

माना की ये नया जमाना है. पर बेजा कब्जे का इतिहास पुराना हैं
सुना है मैंने सबको यह कहते
इस पर रोक लगाना है। 
पर जिसकों मौका मिल जाएं
उसके लिए यें अनमोल खजाना है।
कुटिया से इमारत का सफर
पल भर में हो जाना है।
हमारे भू-माफियाओ का
धंधा पुराना है।
पर्यावरण बचाने हेतु
भू स्थानांतरण नियम बना ,जनता को संतोष दिलाना है।
पर आज इसका हनन तो
यूँ हो जाना है।
अब पर्या नहीं रहा
बंगलो का फसाना है।
राजनीति के दम पर खेल रहा जमाना है।
पर बेजा कब्जा का इतिहास पुराना है।
हितेश तिवारी
(धरोहर साहित्य समाज लोरमी)

साहित्यश्री-2//12//गोपाल चन्द्र मुखर्जी


मुक्तछन्द में निर्झरिणी
साबलील प्रबाहिता,
कुलु कुलु रवे नृत्यरता
सागर मिलने का आशा।
उद्यमी मानव सर्वग्रासा
कब्जा किया है मेरा किनरा,
वह तो उसका नही है
कौन उसे समझायेगा?
चरते रहे बछरे
खेलते रहे बच्चे,
बुढे बच्चो का निस्तारा
अभी बने है ताकतवर का कब्जा।
भूमि,है तो सरकारी -
लेकिन उसमे हुआ क्या!
हम करते है नेतागिरी
तुम जो दिए हो मुझे सत्ता।
इसे नही कहते है बेजाकब्जा
यह तो मेरा ताकत है बच्चा!
अतिक्रमणकारी हम नही -
हम तो सत्ता धारी,
वह, है अतिक्रमणकारी
जो है गरीव झोपरीधारी!
छोटासा किसान,
शासन को देता है लगान!
जमीन का वह टुकरा
पसन्द है मेरा,
अदा करुङा दाम
दिए नही, यह है मेरा अभिमान
कर लिया हूँ कुछेक कब्जा -
नाहि किया काम कच्चा,
मातहत का पकडे चरण
अब कौन कहेगा, इसे अतिक्रमण?
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( गोपाल चन्द्र मुखर्जी )
४४,सुरजमूखी ,
राजकिशोर नगर
बिलासपुर (छ.ग.)
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साहित्यश्री-2//11//महेश पांडेय "मलंग"

साहित्य श्री -2 के लिये मेरी रचना.
अतिक्रमण
उलट रहे सब समीकरण
चंहु ओर है अतिक्रमण.
गैया बेचारी का गोचर
लोगो ने है चर डाले
मरघट को घेर घार के
भुतों संग डेरा डाले.
इन जिन्दा भुतों को देख
हो रहा भय का संचरण
आने जाने के रस्तो को
बंद किया दबंगो ने.
ताल पाटकर उस पर भी
कब्जा किया लफंगो ने.
जनता की तो त्राहि त्राहि है
पशुओ का भी हो रहा मरण.
सब सरकारी जमीन हमारी
का कुछ नारा लगा रहे.
वोटो के लालच मे नेता
झुग्गी झोपडी बसा रहे.
लोकतंत्र की अन्धेरगर्दी का
है ये जीता जागता उदाहरण .
उलट रहे सब समीकरण
चंहु ओर है अतिक्रमण.
महेश पांडेय "मलंग"
पंडरिया कबीरधाम