बुधवार, 16 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//9//-सुनिल शर्मा, खम्हरिया

आजतक खेला किए,जो राष्ट्र के सम्मान से जो सदा कुतरा किए ,माँ की चुनर जीजान से देख तड़पन आज उनकी,है मुझे राहत मिली मुस्कुराई भारती मोदी के इस अभियान से
-सुनिल शर्मा, खम्हरिया

साहित्यश्री-5//8//आशा देशमुख

..घर का भेदी लंका ढाए
अमर वाक्य हर युग में छाए
घर का भेदी लंका ढाए |
स्वारथ जब परवान चढे तब
रिश्ते नाते हैं बेमानी
लोभ घृणा तम दोष मढ़े पर
हर तृष्णा की एक कहानी |
ठूँठ बना दीं नेह टहनियाँ
छल नेअमरित कुंड सुखाए|
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए |
मर्यादा जब जब रोई है
समझो तब तब द्वंद्व उगा है |
मूक बधिर अंधों की नगरी ,
किसको माने कौन सगा है |
पल में सृष्टि बदलने वाले
महासमर को रोक न पाए |
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए|
पृथ्वी का सीना छलनी है
जयचंदों के ही तीरों से ,
सत्य रखे आधार शिला तो
स्तम्भ बनाते शूरवीरों से |
सत्ता की मोहक मूरत से
लालच मद ने होश गवाए |
अमर वाक्य हर युग में छाए ,घर का भेदी लंका ढाए |
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आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
13 .11.2016 रविवार

साहित्यश्री-5//7//देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)

क्या हम जी रहे शुकुन से अपने ही देश में,
हम सबके दिलो में,ऐसे कई सवाल रहे हैं।
हम तो हमेशा चैन अमन की दुआ करते हैं,
अरे कौन हैं जो शांति में,खलल डाल रहे हैं।
हमें दुश्मनो की जरूरत ही क्या है अब ,
जो खुद ही आस्तीन के सांप पाल रहे हैं।
घर के भेदियों की कारस्तानी के कारण,
कामयाब हमारे दुश्मनो के हर चाल रहे हैं।
अरे माना की सरहदों पर जंग आम है,
पर यहाँ आँगन भी लहू से लाल रहे हैं।
यहाँ तो हर चेहरा नकाब से ढका हुआ है,
गीधड़ो के जिस्म में भी शेरो के खाल रहे है।
आज वही हमारे सीने पर गोली दागते है,
जिनकी सलामती के लिए हम ढाल रहे हैं।
आज दुश्मनी की हर हद पार कर गये हैं,
जो दोस्ती जमाने के लिए मिसाल रहे हैं।
मतलब के लिये देशभक्ति की बातें करते हैं,
जो भारत माँ को बेचने वाले दलाल रहे हैं।
मगर ऐसे हालातों के बीच......
धन्य हैं वो नौजवान जो है सरहद पर,
जो देश के लिये जान जोखिम में डाल रहे हैं।
जिन पर माँ के हाथो से लगता है टीका,
सदा ही गर्व से ऊँचे वीरों के भाल रहे हैं।
हर शख्श हमेशा फक्र करता है उनपर,
जो हमारे देश के दुश्मनो के काल रहे हैं।
अपने देश का कर्ज चुकाने हरदम तैयार,
बेमिसाल सीमा पर डटे माँ के लाल रहे हैं।
गर्व करते है माँ बाप बेटे की शहादत पर,
मानों किसी यज्ञ में वो आहुति डाल रहे हैं।
कभी शहीदों के घर वालो से पुछो दोस्तों,
कि वो खुद को ऐसे में,कैसे सम्हाल रहे हैं।

रचना
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

साहित्यश्री-5//6//चोवा राम वर्मा "बादल"

घर का भेदी लंका ढाये ।
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घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
लंकाधिपति बन गया विभीषण
अपयश बोझ शीश उठाये ।
नाम हुआ बदनाम यहाँ तक
नाम विभीषण कोई ना रखवाये ।।
घर का भेदी लंका ढाये
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
पृथ्वीराज से छल करके
दुश्मन गौरी से जा मिलके ।
द्रोही जयचन्द बना गद्दार
गर्दन गिरा उसका भी कट के ।
जान गया पर राज ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
मातृभूमि से जो छल करता
वह कुत्ते की मौत ही मरता ।
इतिहास भरा है पढ़कर देखो
विष बेल कभी ना फलता फूलता ।
गीदड़ कभी ना सिंह को खाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
जो ईमान को बेंचा करता
उसका पेट कभी ना भरता ।
श्रापित अश्वस्थामा होकर
मारा मारा फिरता रहता ।
मिलता घाव जो भर ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
सुनो! जयचंदों शर्म करो
पाप घड़ा ऐसा ना भरो ।
जिस पत्तल में भोजन करते हो
उसमे ही ना छेद करो ।
तेरी मति किसने भरमाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
रचनाकार(विनीत)----चोवा राम वर्मा "बादल"
हथबंद 9926195747
दिनाँक 12-11--2016

साहित्यश्री-5//5//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

घर का भेदी लंका ढाये
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कुछ नाम दर्ज है,
इतिहास के पन्नों में।
कुछ नाम दर्ज है,
आज के पन्नों में।
जो मिलकर गैरों से,
अपनो का नाम लिखवा दिये,
विनास के पन्नों में।
कोई गौरी से जा मिला,
तो कोई मिल गया गोरों से।
घर की नींव हिल जाती है,
जयचंद जैसै चोरों से।
अधर्म के रथ पर ,
है;सवार आज मानव।
अपनों पर ही करवा रहे हैं,
प्रहार आज मानव।
ऐसे भेदी युगों-युगों तक,
धिक्कारे जाएंगे।
जो खाएगें घर का,
और गुण बाहर का गाएंगे।
पांडवो से मिलकर,
युयुत्सु भी सुख-चैन कहाँ पाया था?
रावण के मौत पर भी,
विभीषण सकुचाया था।
सत्य का साथ देकर भी,
विभीषण बदनामी झेल रहा है।
पर लोग आज बनकर स्वार्थी,
अपनों से ही खेल रहा है।
वो घर ; घर नही,
जहाँ छल-कपट का वास हो।
वहाँ उपजे विभीषण,सुग्रीव,
ऐसे घर का नास हो।
घर को घर बनाकर,
रखने की सौगंध खाये।
घर तुमसे है,तुम घर से हो,
तो घर की ,भेद न बताये।
मानते हो जिसे घर का,
तो उसका भी मानना होगा।
मिलकर रहेंगें सभी,
तभी तो भला होगा।
काश रावण विभीषण पर,
पांव न उठाते।
तो बनकर भेदी घर का,
लंका न ढाते।
भले ढहे अहंकार का घर।
भले ढहे विकार का घर।
कोई भेदिया वहाँ न पनपे,
सलामत रहे बस प्यार का घर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-5//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

घर का भेदी लंका ढाये।
सार छंद:--
कोई अपना राह रोकता,मंजिल कैसे जायें?
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
हुनर भरा अपने भीतर भी,कहिये किसे दिखाये?
खड़ा नही वो अपने पीछे,जिनको हुनर बताये।।
हौसला पस्त पड़ जाता है,मंजिल है खो जाता।
साथ नही मिलता अपनो का,किस्मत है सो जाता।।
खेत मुहानी अपने फोरे,कैसे फसल पकाये?
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
भरा पड़ा इतिहास हमारा,भेदी जयचन्दो से।
कैसे रण जीते रणवीरा,घर के छलछन्दो से।।
बढ़कर दुश्मन ललकार रहा,हम हांथ बांध बैठे।
चढ़ छानी होरा भून रहा,हम मौन साध बैठे।।
भेद भरम के गढ्ढे गढ़ के,प्रेम नही भरवाये।
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
अगर न होता घर मे भेदी,विजयी निश्चित होता।
फिर धोखे का दंश न होता,फिर विश्वास न रोता।।
सपने सारे पूरन होते,खिला खिला मन होता।
साहस बरसाता नील गगन,मन अन्तर्मन भिगोता।।
दुष्प्रभाव भेदी का कहिये,सोंच धरे रह जाये।
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

साहित्यश्री-5//3//नवीन कुमार तिवारी

विषय-‘"घर का भेदी लंका ढाये"
एक प्रयास ,,,,
शुभ सांध्य अभिवादन ,
शुरुवात करो सत्य मनन का
माँ भारती को कर नमन
देश सेवा में दे रहे जो प्राण उत्सर्ग
उनके शहादत को करो नमन ,
शब्द बाण तीखे न चलाओ
कुछ तो शहादत पर अश्रु बहाओ
देश की फिजा में अकारण जहर घोल रहे ,
खुजली कुत्ते बन अकारण भोंक रहे ,
शहादत उन्हें दिखती नहीं क्या ,
जो धर्म का चश्मा पहन भोंक रहे ,
अल्प ज्ञानी तो हो नहीं ,
महा ज्ञानी बन सकते नहीं ,
भेदिया विभीषण ,जयचंद मीर न बनो,
माँ भारती का कुछ जतन करो ,
करते बढे यतन से हो ,
गद्दारों की ही महिमा मंडन ,
देश द्रोहियों से क्या नाता है ?
टोपी पहन जो बहलाते हो ,,
शहद चाशनी फीकी है ,
ऐसे उनके कढवे बोल ,
चाटुकारों के छलावे में
सत्ता जाने के भुलावे में
वोट बेंक के फेर में
देश धर्म नैतिकता भूल
शब्द बाण तीखे चला
बन रहे एक नासूर ,
गद्दार का महिमा गाना ,
समानता पे टेसुआ बहाना ,
शब्द बाण तीखे न चलाओ
भस्मासुर निर्माण न करो ,,
घर का भेदी लंका ढाये
अपनी करनी स्वयं भोगे
कही स्वयं न हो जाओ
अनल शूल में काफूर ,
नवीन कुमार तिवारी ,९४७९२२७२१३
एल आई जी १४/२, नेहरू नगर पूर्व
भिलाई नगर दुर्ग छ. ग. 490020

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//2//दिलीप पटेल

घर का भेदी लंका ढाये"
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पराक्रमी भी जीत न पाया
तु काहे को रार मचाये
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
बाली जैसा बलशाली
क्यू चूक गयी थी प्रभू की चाली
डाल गले मे पुष्पो की माला पिछे से वार करवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
रावण जैसा महाग्यानी
सौ योजन चक्र समुद्र की पानी
देखी तरूवर वृंदा की आंगन हनुमत विभिषण से बतियाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये....
लाक्छा गृह मारने पांडवों को
शकुनी ने बोला कवरवों को
भनक लगी जब विदूर को , तो सुरंग ऊन्हो ने बनवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये,
अर्जून था निपुर्ण धनूर्विद्या में
एकलव्य भी उतनी स्वयं शिक्छा में
वचन निभाने गुरू द्रोण क्यू , एकलव्य से उंगली कटवाये
नियती नही ये तो छल है , जब घर का भेदी लंका ढाये.....
आज भी देखो घर घर में कलयुग के इस प्रमाण को
मातु - पिता को भूल के बच्चे पूज रहे पाषाण को
घर वालो से मिल कर पडोसी घर वालो को ही लडवाये,
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
परक्रमी भी जीत न पाया
तु काहे को रार मचाये
नियती नही ये तो छल है, जब घर का भेदी लंका ढाये.....
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो. नं. 8120879287

साहित्यश्री-5//1//दिलीप वर्मा

विषय--"घर का भेदी लंका ढाये"
गीत
अपने मन की बात कहो अब 
हम किसको बतलायें
जिसको हमने अपना समझा
ओ तो हुए पराये।
जाके दुश्मन के खेमे में
सारी बात बताये..
घर का भेदी लंका ढाये।
हम दुश्मन से हार सके न
अपनों से ही हारे हैं
उस पर कैसे तीर चलायें
जो अपने को प्यारे हैं
रण भूमि में खड़ा ओ आगे
कैसे कदम बढ़ायें...
घर का भेदी लंका ढाये।
कोई परिंदा मार न सकता
पर अपने ठिकाने में
जब तक भेदी भेद न खोले
दुश्मन के आशियाने में
ऐसे भेदी ढूंढ ढूंढ के
पहले फांसी चढ़ायें...
घर का भेदी लंका ढाये।
रावण बड़ा प्रतापी था ओ
और सिद्ध था योगी
ताकत तो भरपूर भरा था
पर मन से था भोगी
एक विभीषण के कारण ओ
अपनी प्राण गवाये...
घर का भेदी लंका ढाये।
दिलीप वर्मा
बलौदा बाज़ार
9926170342

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

//साहित्य श्री-4 का परिणाम//

साहित्य श्री-3 ‘एक कदम उजाले की ओर‘ विषय पर आयोजित किया गया जिसमें 11 रचनाकार मित्र हिस्सा लिये । सभी रचनाकारों का प्रयास सराहनीय रहा । इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार । प्राप्त रचनाओं में भाव, शिल्प और दिये गये विषय के साथ न्याय संगतता के आधार परनिर्णायक डॉ. प्रो. चन्द्रशेखर सिंह ने निम्नानुसार परिणाम घोषित किये हैं-

प्रथम विजेता-श्री चोवा राम वर्मा ‘बादल‘
द्वितीय विजेता-श्री दिलीप कुमार वर्मा
तृतीय विजेता- श्री जीतेन्द्र वर्मा ‘खैरझिटिया

सभी विजेता बंधुओं को ‘छत्तीसगढ़ साहित्य श्री‘ एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच‘ की ओर से कोटिश बधाई ।
सभी रचनाकारो से आपेक्षा की इसी प्रकार साहित्य सृजन में सहयोग प्रदान करते रहेंगे ।

‘छत्तीसगढ़ साहित्य श्री‘

मंगलवार, 1 नवंबर 2016

//साहित्य श्री-5 की रूपरेखा//

अवधि- 1 नवम्बर 2016 से 15 नवम्बर 2016 तक
विषय-‘‘घर के भेदी लंका ढाय‘‘
विधा-विधा रहित
मंच संचालक- श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव (सह एडमिन)
निर्णायक-डाँ. प्रो. चंद्रशेखर सिंह

नियम-प्रतिभागी रचना केवल छत्तीसगढ़ साहित्य दर्पण में पोस्ट होनी चाहिये । प्रतियोगिता अवधि में यह रचना अन्यत्र प्रकाशित नही होना चाहिये ।
रचना के ऊपर ‘साहित्य श्री-4‘‘ हेतु रचना लिखना आवश्यक होगा ।
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‘साहित्य श्री‘ हिन्दी कविताओं का प्रतियोगिता
उद्देश्य -1. हिन्दी काव्य के विभिन्न विधाओ की जानकारी, उस विधा में रचना, एवं रचना में कसावट लाना । ‘सिखो और सीखाओ‘ के ध्येय वाक्य से एक दूसरे के सहयोग से अपने लेखन कर्म को सार्थक करना ।
2. विशेष कर छत्तीसगढ़ के नवरचकारो को भाव अभिव्यक्ति हेतु मंच उपलब्ध कराना ।
3. प्रदत्त विषय में लेखन क्षमता विकसित करना ।
प्रारूप-प्रत्येक माह दो आयोजन 1. 1 से 15 तारीख तक विषय/शिर्षक आधारित 2. 16 तारीख से 30 तारीख तक चित्र या काव्यांश आधारित ।
प्राप्त रचनाओं को वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकारों से मूल्यांकन करा कर श्रेष्ठता तय कर श्रेष्ठ रचना को ‘साहित्यश्री‘ के मानक उपाधी से सम्मान करना ।

साहित्यश्री-4//11//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

'उजाले की ओर हर कदम हो'
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मुश्किल हो राहे फिरभी चलना होगा
अंधेरों में बनके दिया जलना होगा।
मत हारना तू! ऐ मुसाफिर
हर दर्द को चुपचाप सहना होगा।
दिल मेरा बरसों से प्यासा है
मिल जाये उम्मीद की बूँद आशा है।
लड़ जाऊ मैं भी अंधेरो से
'उजाले की आस' बस जरा सा है।
हवा बनकर हर राह चलना होगा
बिछड़े हुये लोगों से मिलना होगा।मत.....
जिंदगी की कितनी अजीबो रंग है
लोगों का भी अपना-अपना ढंग है।
मिलना बिछड़ना यहाँ रीत है'प्यारे'
हर पल जिंदगी एक जंग है।
यहां हर मौसम में ढलना होगा
उसी का दुनिया अपना होगा।मत......
जिंदगी में खुशियां हो चाहे गम हो
कितनी भी। घोर चाहे तम हो।
कुछ हासिल करना चाहते हो गर"ज्ञानु"
'उजाले की ओर हर कदम हो'
जिंदगी की हर पहलु को समझना होगा
जिंदगी जीने के लिए पल पल मरना होगा।मत..
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा

साहित्यश्री-4//10//दिलीप पटेल

" एक कदम उजाले की ओर "
**************************************नित नविन शालीन पथ पर
चलना है हम सबको मिलकर
अब आ गई है क्रांती की दौर ....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
राहों में मुश्किल तुफाने को
या सागर की ऊफानो को
लांघनी हर शरहदो को, काले बादल घटा घनघाेर....
आओ मिलकर साथ बढायें एक कदम उजाले की ओर !!
छुट न जावें कोई अपना
टूट न जावें कोई सपना
दिशाओं में नही भटकेंगे , थाम कर एकता की डोर.....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दीन दूखी या कोई बेसहारा
बनेंगे हम सबका सहारा
कोई भी न भूखा सोने पाये , खायेंगे रोटी बांट कर कौंर....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
मिटेगी मन की अंधियारी
महकेगी फूलों की क्यारी
अंत होती है निशा की , पा करके रवि का भोर....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दृढता की संकल्प होगी
अब न कोई विकल्प होगी
मन में है विस्वाश हमारा , हम जा रहे है सफलता की ओर.....
आओ मिलकर साथ बढायें, एक कदम उजाले की ओर !!
दिलीप पटेल बहतरा, बिलासपुर
मो.नं.-8120879287