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बुधवार, 16 नवंबर 2016

साहित्यश्री-5//6//चोवा राम वर्मा "बादल"

घर का भेदी लंका ढाये ।
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घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
लंकाधिपति बन गया विभीषण
अपयश बोझ शीश उठाये ।
नाम हुआ बदनाम यहाँ तक
नाम विभीषण कोई ना रखवाये ।।
घर का भेदी लंका ढाये
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
पृथ्वीराज से छल करके
दुश्मन गौरी से जा मिलके ।
द्रोही जयचन्द बना गद्दार
गर्दन गिरा उसका भी कट के ।
जान गया पर राज ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
मातृभूमि से जो छल करता
वह कुत्ते की मौत ही मरता ।
इतिहास भरा है पढ़कर देखो
विष बेल कभी ना फलता फूलता ।
गीदड़ कभी ना सिंह को खाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये ?
जो ईमान को बेंचा करता
उसका पेट कभी ना भरता ।
श्रापित अश्वस्थामा होकर
मारा मारा फिरता रहता ।
मिलता घाव जो भर ना पाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
सुनो! जयचंदों शर्म करो
पाप घड़ा ऐसा ना भरो ।
जिस पत्तल में भोजन करते हो
उसमे ही ना छेद करो ।
तेरी मति किसने भरमाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।
ऐसा कर उसने क्या पाये?
रचनाकार(विनीत)----चोवा राम वर्मा "बादल"
हथबंद 9926195747
दिनाँक 12-11--2016

साहित्यश्री-5//5//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

घर का भेदी लंका ढाये
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कुछ नाम दर्ज है,
इतिहास के पन्नों में।
कुछ नाम दर्ज है,
आज के पन्नों में।
जो मिलकर गैरों से,
अपनो का नाम लिखवा दिये,
विनास के पन्नों में।
कोई गौरी से जा मिला,
तो कोई मिल गया गोरों से।
घर की नींव हिल जाती है,
जयचंद जैसै चोरों से।
अधर्म के रथ पर ,
है;सवार आज मानव।
अपनों पर ही करवा रहे हैं,
प्रहार आज मानव।
ऐसे भेदी युगों-युगों तक,
धिक्कारे जाएंगे।
जो खाएगें घर का,
और गुण बाहर का गाएंगे।
पांडवो से मिलकर,
युयुत्सु भी सुख-चैन कहाँ पाया था?
रावण के मौत पर भी,
विभीषण सकुचाया था।
सत्य का साथ देकर भी,
विभीषण बदनामी झेल रहा है।
पर लोग आज बनकर स्वार्थी,
अपनों से ही खेल रहा है।
वो घर ; घर नही,
जहाँ छल-कपट का वास हो।
वहाँ उपजे विभीषण,सुग्रीव,
ऐसे घर का नास हो।
घर को घर बनाकर,
रखने की सौगंध खाये।
घर तुमसे है,तुम घर से हो,
तो घर की ,भेद न बताये।
मानते हो जिसे घर का,
तो उसका भी मानना होगा।
मिलकर रहेंगें सभी,
तभी तो भला होगा।
काश रावण विभीषण पर,
पांव न उठाते।
तो बनकर भेदी घर का,
लंका न ढाते।
भले ढहे अहंकार का घर।
भले ढहे विकार का घर।
कोई भेदिया वहाँ न पनपे,
सलामत रहे बस प्यार का घर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-5//4//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

घर का भेदी लंका ढाये।
सार छंद:--
कोई अपना राह रोकता,मंजिल कैसे जायें?
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
हुनर भरा अपने भीतर भी,कहिये किसे दिखाये?
खड़ा नही वो अपने पीछे,जिनको हुनर बताये।।
हौसला पस्त पड़ जाता है,मंजिल है खो जाता।
साथ नही मिलता अपनो का,किस्मत है सो जाता।।
खेत मुहानी अपने फोरे,कैसे फसल पकाये?
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
भरा पड़ा इतिहास हमारा,भेदी जयचन्दो से।
कैसे रण जीते रणवीरा,घर के छलछन्दो से।।
बढ़कर दुश्मन ललकार रहा,हम हांथ बांध बैठे।
चढ़ छानी होरा भून रहा,हम मौन साध बैठे।।
भेद भरम के गढ्ढे गढ़ के,प्रेम नही भरवाये।
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
अगर न होता घर मे भेदी,विजयी निश्चित होता।
फिर धोखे का दंश न होता,फिर विश्वास न रोता।।
सपने सारे पूरन होते,खिला खिला मन होता।
साहस बरसाता नील गगन,मन अन्तर्मन भिगोता।।
दुष्प्रभाव भेदी का कहिये,सोंच धरे रह जाये।
घर का भेदी लंका ढाये,जीत कहां से पायें?
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

साहित्यश्री-5//3//नवीन कुमार तिवारी

विषय-‘"घर का भेदी लंका ढाये"
एक प्रयास ,,,,
शुभ सांध्य अभिवादन ,
शुरुवात करो सत्य मनन का
माँ भारती को कर नमन
देश सेवा में दे रहे जो प्राण उत्सर्ग
उनके शहादत को करो नमन ,
शब्द बाण तीखे न चलाओ
कुछ तो शहादत पर अश्रु बहाओ
देश की फिजा में अकारण जहर घोल रहे ,
खुजली कुत्ते बन अकारण भोंक रहे ,
शहादत उन्हें दिखती नहीं क्या ,
जो धर्म का चश्मा पहन भोंक रहे ,
अल्प ज्ञानी तो हो नहीं ,
महा ज्ञानी बन सकते नहीं ,
भेदिया विभीषण ,जयचंद मीर न बनो,
माँ भारती का कुछ जतन करो ,
करते बढे यतन से हो ,
गद्दारों की ही महिमा मंडन ,
देश द्रोहियों से क्या नाता है ?
टोपी पहन जो बहलाते हो ,,
शहद चाशनी फीकी है ,
ऐसे उनके कढवे बोल ,
चाटुकारों के छलावे में
सत्ता जाने के भुलावे में
वोट बेंक के फेर में
देश धर्म नैतिकता भूल
शब्द बाण तीखे चला
बन रहे एक नासूर ,
गद्दार का महिमा गाना ,
समानता पे टेसुआ बहाना ,
शब्द बाण तीखे न चलाओ
भस्मासुर निर्माण न करो ,,
घर का भेदी लंका ढाये
अपनी करनी स्वयं भोगे
कही स्वयं न हो जाओ
अनल शूल में काफूर ,
नवीन कुमार तिवारी ,९४७९२२७२१३
एल आई जी १४/२, नेहरू नगर पूर्व
भिलाई नगर दुर्ग छ. ग. 490020

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-3//10//आशा देशमुख

विषय __जय माता दी
जय माता दी जय माता दी
दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ,
हाँथ जोर सब भक्त खड़े हैं ,
गूँज रहे जयकारे माँ |
आदिशक्ति हे मातु अम्बिके ,
अजा अनंता कल्याणी ,
माया विद्या उमा अपर्णा ,
कामाक्षा हे शिवरानी |
वेद ऋचाएँ मंगल गाएं ,आरत साँझ सकारे माँ |
जय माता दी जय माता दी,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
अष्टभुजी पर्वतनिवासिनी
शैलसुता ज्ञाना गौरी ,
मातंगी वनदुर्गा चित्रा
युवती प्रौढ़ा कैशोरी |
बहुरूपा हे मंगलकरनी ,मुदिता दृष्टि निहारे माँ |
जय माता दी जय माता दी ,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
शूल धारणी पाप नाशनी
कालि कराली विकराली ,
त्रिनेत्रा वाराही पाटला
रौद्रमुखी हे बलशाली |
असुरमर्दिनी भवभयहरणी ,भक्तो के दुख टारे माँ |
जय माता दी जय माता दी ,दुनियाँ तुम्हे पुकारे माँ |
****************************************
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
13 -10-2016 ....गुरुवार

साहित्यश्री-3//9//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

****जय माता दी*****
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पी ले माता रानी की,
भक्ति का रस घोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी"बोलकर।
न पड़ मोह - माया में।
न जड़ ताला काया में।
आधार बना माँ भवानी को।
दिन गुजार उनकी छाया में।
न दिल दुखा किसी का,
बोल बानी तोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी" बोलकर।
ह्रदय में अपने, बसाले माँ को।
रोते को हँसाकर,हँसाले माँ को।
क्यों फांसते हो छल से किसी को,
अपनी भक्ति में फंसाले माँ को।
तिनका - तिनका तज माया का,
बस माँ की भक्ति का मोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
सुम्भ -निसुम्भ, चण्ड-मुण्ड,
है महिषासुर घाती माँ।
भैरव लँगुरे द्वार खड़े,
भक्तन काज बनाती माँ।
खाली झोली भरती माँ,
आशीष देती दिल खोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
दर्शन की लगन लागी हो।
मन भक्ति का आदी हो।
जीवन सफल हो जायेगा,
मुँह में "जय माता दी" हो।
माँ की शरण में पड़े जीतेन्द्र,
गुण गाये डोल - डोलकर।
देखो कितने तर गये,
"जय माता दी " बोलकर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

साहित्यश्री-3//8//देवेन्द्र कुमार ध्रुव

जय माता दी.....
चाहे शीतल छांव हो या फिर खिलती धुप में
कण कण में विराजित है माँ दुर्गा कई रूप में
तेरी हर मुराद पूरी होगी यहां,मांग ले बन्दे
बस जयकारा लगा "जय माता दी" बोल...
फिक्र क्यों करता है इस नश्वर काया की
बेड़ियों में क्यों जकड़ा है मोह माया की
धन्य हो जायेगा,जो माँ के दर्शन पायेगा
ध्यान लगा बस,अंतर्मन के पट खोल...
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
डूब जा भक्ति भाव में,तू सफल हो जायेगा
मन तेरा,पवित्र पावन निश्छल हो जायेगा
परमार्थ का काज कर,व्यर्थ ना गवां इसे
औरो के काम आ,ये जीवन है अनमोल....
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
माँ के दरबार में बस मांगने चला आता है
तू नई हसरत,नई मन्नत लिये चला आता है
श्रद्धा में भी,तेरा स्वार्थ छुपा कहीँ ना कहीँ
निश्वार्थ क्या किया अपने अंदर भी टटोल...
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल...
अरे माँ तो सबको सहारा देती है
सबको जीने का गुजारा देती है
इंसानियत का धरम पहले निभा
मानवता के तराजू में खुद को तौल....
बस जयकारा लगा"जय माता दी"बोल....
*रचना*
देवेन्द्र कुमार ध्रुव (डी आर)
फुटहा करम बेलर
जिला गरियाबंद (छ ग)

साहित्यश्री-3//7//गोपाल चन्द्र मुखर्जी

" जय माता दी "
जय माता दी जयकारा 
संतान तेरा करेगा क्या!
माँ,आप जाकर बैठी हो 
दुर्गम पर्वत पर, 
अन्धेरा गुफा में 
घनघोर गभीर जंगल में। 
चाहते है मन, तेरी दर्शण, 
खुशीभरे दिल, मन चंचल। 
भुखे - प्यासा पैर लड्खराई 
तेरी नाम ही संबल हे महामाई। 
दिए चले तेरा जयकारा
जय माता दी, जय हो माता, 
दर्शण मिलें चरण तुम्हारी 
सार्थक हो जनम हमारी॥ 
माता जी,आप ही महाचण्डी,
महालक्ष्मी,महासरस्वती। 
आप ही आदिशक्ति महामाया वैष्णवी
दशमहाविद्या करालबदना महाकाली। 
अरिहन्ती रक्षाकर्ती शिवप्रिया भैरवी 
त्रिनेत्री अस्टभूजी सन्तानस्नेही गौरी॥ 
यौवनवती तेजोमयी प्रचण्ड बलशालीनी
रणप्रिया अभया दुर्गे, दुर्गति नाशिनी, 
सर्वपाप विनाशिनी धर्म मोक्ष दयिनी। 
मनाते है संतान नवरात्री 
जागरन, जयकारा जय माता दी॥ 
*** 
(गोपाल चन्द्र मुखर्जी)

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

साहित्यश्री-3//6//दिलीप

विधा---हाइकु
जय माता दी।
चलता चल
माता तुझे पुकारे
पार उतारे।
बढ़ता चल
चल माता के द्वारे ।
भाग संवारे।
कहीं न रुक
पाँव थके न तेरे।
घोर अँधेरे।
चाहे कंकड़
पत्थर राह पड़ी।
मत घबरा।
पर्वत का तू
चीरता चल सीना।
बहे पसीना।
जोर से बोलो
गूंज उठे ये वादी।
जय माता दी।
दुःख में सुख
भरपूर मिलेंगे।
भाग खिलेंगे।
जय माता दी
गूंज रही नभ में।
माँ है सब में।
दर्शन होंगे
धीरज रख मन।
लगी कतारें।
भक्त कभी न
दर से खाली जाते।
आशीष पाते।
कहता चल
माता के दरबारे।
जय माता दी।
दिलीप भी है
द्वारे माँ, फरियादी।
जय माता दी

साहित्यश्री-3,//5//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

विषय:-- जय माता दी।
जीवन पथ पर हर क्षण हर पल।
जय माता दी कहता चल।
सुबह दोपहरी सांझ रात हो।
चाहे कोई अर्जेन्ट बात हो।
सब कुछ पा जाने का दंभ हो।
या कुछ ना पाने का गम हो।
जीवन की हो कुछ अबूझ पहेली..
खोजे मिल न रहा हो हल।
जय माता दी कहता चल।
उच्छल बचपन का उमंग हो।
या यौवन जब अपना संग हो।
रोजी रोजगार की हो लाचारी।
या हो घरबार की जिम्मेदारी।
बुढ़ापे की लाठी कहीं दिखे ना..
उमर अनवरत रहा हो ढल।
जय माता दी कहता चल
जीवन पथ पर हर क्षण हर पल।
जय माता दी कहता चल।
रचना:- सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

साहित्यश्री-3//4//राजेश कुमार निषाद

।। जय माता दी ।।
माता तुम्हें मनाने के लिए,
आये हैं तेरे जस गाने।
शरण में आये है हम तुम्हारे,
अपनी किस्मत जगाने।
हाथ जोड़ मै करूं आरती, जगत जननी माता की ।
जय बोलो जय माता की, सब बोलो जय माता दी।
सबके बिगड़ी बनाती मैय्या,
भवसागर से पार लगाने वाली है।
पापियों के नाश करके मैय्या,
जग को दुष्टों से बचाने वाली है।
करू मै सेवा सुबह शाम ऐसी भाग्यविधाता की।
जय बोलो जय माता की, सब बोलो जय माता दी।
काली चण्डी दुर्गा गौरी अनेकों तुम्हारे नाम है।
सबको शरण देने वाली तुम्हे मेरा प्रणाम है।
गुण गाऊँ मै माँ भवानी आपकी उदारता की।
जय बोलो जय माता की, सब बोलो जय माता दी।
रचनाकार ÷ राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद ( सामोद )
9713872983

साहित्यश्री-3//3//गुमान प्रसाद साहू

विषय - जय माता दी
शिर्षक-"जय माता दी बोलते चलो"
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
दूर करेंगी माँ शेरावाली, सब दूख दर्द को हमारे।
ऊँचे पहाड़ो में हैं बसी, मैय्या द्वार सजाये।
भक्त सभी सीढ़ियाँ चढ़के, दर्शन करने आये।
बम्लेश्वरी,दंतेश्वरी,वैष्णोदेवी, इन्ही के नाम हैं सारे।
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
बच्चें है हम सब उनके, ओ है माता हमारी।
एक बराबर सब उनके लिए, राजा रंक भिखारी।
भर देंगी माँ ज्योतावाली भक्तों, खाली झोली हमारे।
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
भक्त जनों पर पड़ा है, जब जब भी संकट भारी।
दानवों को मार गिराने, ली है मैय्या ने अवतारी।
पहाड़ा वाली की लगाते चलो, भक्तों सभी जयकारे।
जय माता दी बोलते चलो, भक्तों मैय्या के द्वारे।
रचना :- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम-समोदा (महानदी)
मो. :- 9977313968
जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)

साहित्यश्री-3//2//ज्ञानु मानिकपुरी"दास"

"जयमातादी"
~~~~~~~
थामा है हाथ जबसे, बिगड़ी बनते साज।
जो भी आया शरण में,होते पूरण काज।
होते पूरण काज,राज है महिमा माँ का।
चरणों में होते माथ, होय कभी बाल न बॉका।
जय माता दी जपू,सदा ही अपने मुखसे।
गम नही नही फ़िकर,थामा है हाथ जबसे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ज्ञानु मानिकपुरी"दास"
चंदेनी कवर्धा
9993240143

साहित्यश्री-3//1//संतोष फरिकार

जय माता दी जय माता दी
सभी दोस्तो को जय माता दी
आ गया मां की नव रात्री पर्व
आ गया नव दिन नव रात
सब मीलकर बोलो जय माता दी
नव दिन से गुंजे का मां की महिमा
नव दिन गुंजे गा मां का जयकारा
सब मील कर बोलो जय माता दी
नव दिन के लिए आया है मां
नव रूप मे रहेगा मां का रूप
अलग अलग दिन मां का रूप
दुर्गा मां का रूप है नव प्रकार
सब मीलकर बोलो जय माता दी
डोगरी पाहाड़ मे निवास है मां
आपका लिला है सबसे नियारी
सब भक्त है आपके बच्चे है प्यारी
अपने बच्चो की करते हो देखभाल
करते हो मुशिबत मे रखवाली मां
सब मीलकर बोलो जय माता दी
दुर दुर से आते है मां आपका दर्शन
करने को भक्त आपके घर दुवार
दर्शन को पाके मां भुल जाते है
अपने दुख दर्द लौटते है घर दुवार
सब मीलकर बोलो जय माता दी
*******************************
#मयारू
संतोष फरिकार
देवरी भाटापारा
9926113995