शनिवार, 4 मार्च 2017

साहित्यश्री-9//2//जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

मन मोहे मधुमास
----------------------------
पीपल पत्ते मंद पवन में,
उड़ रहे हैं फुर्र फुर्र।
आम लदे हैं बौरो से,
देखे लोग घूर घूर।
कूक कोयल की,
मदहोश कर जाये।
पात हिलाकर पवन,
बंसी खूब बजाये।
चंहुओर फिजा में,
रची हुई है रास।
मन मोहे मधुमास।
बगियन बीच बहार है।
फूले फूल हजार है।
तितली भौंरा मस्ती में झूमे,
धरा किये सृंगार है।
टेसू के लाल फूल,
खींचे फागुन की ओर।
ढोल,नगाड़े,मादर,झाँझ,
और फाग धुन की ओर।
लगे खास,जगाये आस।
फूलकर लाल पलास।
मन मोहे मधुमास।
मंद पवन दे,धीमी लहर,
नाचे नदी तलाब।
पांव उठाये नदी किनारे,
बगुला बुने ख्वाब।
तट के वट,मुखड़ा अपने,
देख रहे हैं जल में।
फूलो की महक,
चिड़ियों की चहक,
लुभाये पल पल में।
पेड़ गिराकर पत्ते,
ओढ़े नया लिबास।
मन मोहे मधुमास।
सरसो पीली।
अलसी नीली।
चना गेंहूँ,
रंग रंगीली।
नाचे अरहर,
गाये मसूर।
मटर गोभी,
निकले भरपूर।
बयार बजाये गीत,
नाचे इमली,बेल,बेर सारी।
आये है बसंत,
खुशी लेकर ढेर सारी।
सजे सुर्ख लाल में,
सेंम्हर छुए आकास।
मन मोहे मधुमास।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें