विषय:-मधुमास
विधा:-सरसी छंद
दुल्हन जैसी सजी धरा है,गगन सजा है खास।
स्वागत की बेला है नूतन,नया नया अहसास।
स्वागत की बेला है नूतन,नया नया अहसास।
झूम रही है मन की डाली,जैसे हुयी प्रभात।
चिड़ियों की कलरव को सुनकर,जाग उठा हो रात।
चिड़ियों की कलरव को सुनकर,जाग उठा हो रात।
तरुवर महक रहे हैं देखो,छाया नया उमंग।
नव रंगो से शोभित काया,बदल गया है ढंग।
नव रंगो से शोभित काया,बदल गया है ढंग।
कोयल कूक रही डाली पर,है मदमस्त बयार।
फूल हुयी आह्लादित सुनकर,भौंरो की गूँजार।
फूल हुयी आह्लादित सुनकर,भौंरो की गूँजार।
सिमट रही है तृप्त लतायें,मन तरुवर के संग।
नव जीवन की चाह बढ़ी है,चढ़ा प्रेम का रंग।
नव जीवन की चाह बढ़ी है,चढ़ा प्रेम का रंग।
फूट रहे हैं रस की धारा,सराबोर हर आस।
नीरसता की भाव मिटाने,आया है मधुमास।
नीरसता की भाव मिटाने,आया है मधुमास।
दूर पहाड़ों मे फिर जागा,परदेशी का प्यार।
सरहद को भी याद आ रहा,अपना घर परिवार।
सरहद को भी याद आ रहा,अपना घर परिवार।
यादों ने फिर करवट ली है,जागे हैं अरमान।
जीवन की उपहार समेटे,आया है मेहमान।
जीवन की उपहार समेटे,आया है मेहमान।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अंजोर"
शिक्षक (पं.) गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
28/02/2017
शिक्षक (पं.) गोरखपुर,कवर्धा
9685216602
28/02/2017
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