शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

साहित्यश्री-8//5//सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"

विषय:-ठिठुरन
विधा:- नवगीत
बात बाकी रह गयी ठिठुरन भरी उस रात की।
चल रही ठंडी हवा थी
हौसलों को तोड़ने।
जिन्दगी भी डट गयी थी,
साहसों को जोड़ने।
टूट पड़ना था उसे अब डर कहां थी मात की।
जिन्दगी कँप जग रही थी,
आसमाँ के छांव मे।
कोशिशें ठिठुरी पड़ी थी,
क्या शहर क्या गांव मे।
कौन जिम्मेवार था उस दुख भरी हालात की।
कौन समझाता रहा है?
मूल्य उसको वोट का।
कौन दिखलाता रहा है?
घांव उसको चोंट का।
दर्द जाता क्यों नही जैसे दरद हो वात की।
सर्द ठण्डी रात मे जब,
कँप रही थी जिन्दगी।
जुड़ गये थे हांथ समझो,
हो रही थी बंदगी।
हो रहा था भ्रम खुदा को खेद थी इस बात की।
ओज फैले सूर्य की अब,
चहचहाती शोर हो।
तोड़ने जंजीर तम की,
सुनहरी सी भोर हो।
राह तकती जिन्दगी अब इक नई शुरुवात की।
रचना:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
9685216602

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