शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

साहित्यश्री-8//3//जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

ठिठुरन
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सर्द हवाओं की आगोस में,
खेल रही है,ठिठुरन।
सब में अपना रंग,
मेल रही है ,ठिठुुरन।
सूरज की किरणों से,
कराती है यारी।
खाने को कहती है,
गर्म चीज सारी।
कभी कहती है,
गर्म अंगारो के समीप बैठ जाओ।
तो कभी कहती है,
गर्म कपड़ो में ही ऐंठ जाओ।
ठंडी-ठंडी चीजो से लड़ाती है वो।
बिस्तर से बार- बार जगाती है वो।
पिलाती है गर्म पानी,
खिलाती है गर्म खाना।
थोड़े खफा है उनसे,
दादा-दादी,नानी-नाना।
आई है हर घर,
फलों सब्जियों का अम्बार लेकर।
सर्द हवाओ में,
अपना प्यार लेकर।
ठंडी हवा साँस उनकी।
ओस की बूंद लिबास उनकी।
धुंध-कोहरे,झिलमिल रौशनी,
घटती-बढ़ती आस उनकी।
पीली सरसो के फूलों से,
खेलती है ठिठुरन।
रबी फसलों में रंग,
मेलती है ठिठुरन।
झूलती है,बेर इमली,
के फलो के साथ।
उड़ती है पंछियों सी,
गाती है झरनो की
कल-कलो के साथ।
पौष में बढ़ जाती है,
हर सुबह-शाम और रात को।
मांघ में कहना चाहती है,
अपनी बची हर बात को।
उधर ससुराल सजने लगी है,
आम के बौरों से।
गुंजार है बगिया,
कोयली और भौरों से।
बारात लेकर ;बसन्ती हवा आई है,
संवारकर घर बन को।
डोली में बिठाकर,
ले जाने ठिठुरन को।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

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