शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

साहित्यश्री-8//4//श्री एस•एन•बी• साहब रायगढ़

विषय - ठिठुरन
साफ-स्वच्छ 
दूधिया चाँदनी के तले
नंगे बदन
सारी रात
गुजार देते हैं ।
कंपकंपाते
ठिठुरते तन
दूर-दूर तक गूँजती
जिनके दाँतों की कडकडाहट ।
वे बेजुबान
न जाने कितने
रतजगे किए ।
आज कौन ?
महसूस करता है
वह पीड़ा
पूस की
रात की
बर्फ सी जाडा ।
घड़ी दो घड़ी
अपनी तपती हाँथों को
जाडे के उस
कोने पर रखना
जहाँ गुजर जाती है
उन गरीबों की
उम्र सारी ।
श्री एस•एन•बी• साहब
रायगढ़

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