विषय:-- //नोट का चोट//
कालाधन
कराह रहा,
पड़ा नोट का चोट।
कराह रहा,
पड़ा नोट का चोट।
जनता का विश्वास जीत जो,उस से छल करते है।
जनता के ही धन मन पर फिर,भ्रष्ट नियत रखते है।
जनता के ही धन मन पर फिर,भ्रष्ट नियत रखते है।
आज
उजागर हो रहा,
भ्रष्ट नियत का खोट।
उजागर हो रहा,
भ्रष्ट नियत का खोट।
जमाखोर हैं असमंजस मे,हांथ पांव फूला है।
आंख रगड़ रहा भ्रष्टाचार,शायद आंख खुला है।
आंख रगड़ रहा भ्रष्टाचार,शायद आंख खुला है।
आज
जुगत मे जुट गये,
सफेद करने नोट।
जुगत मे जुट गये,
सफेद करने नोट।
जाली नोट जाल फैला था,थम जायेगा धंदा।
आतंकवाद भुखा मरेगा,बंद पड़ेगा चंदा।
आतंकवाद भुखा मरेगा,बंद पड़ेगा चंदा।
नोटबेन
से हो गया,
कूड़ा जाली नोट।
से हो गया,
कूड़ा जाली नोट।
रचना:--सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अंजोर"
गोरखपुर,कवर्धा
गोरखपुर,कवर्धा
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