मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

साहित्यश्री-7//3//एस•एन•बी•"साहब"

विषय - "आतंकवाद को खत्म करें"
निर्णायक समिति को सादर प्रणाम
माथे पर कलंक लिए,
लिए तुम फिरते हो ।
माँ भारती से सामना,
करने से तुम डरते हो ।
चेहरा छुपा के तुम,
कत्लेआम करवाते हो ।
जिहाद के नाम पर,
आतंकवादी कहलाते हो ।
सीने में दहकती है चिंगारी,
हर हिन्दुस्तानी के ।
हवा का रूख जो बदला,
फूट पड़ेगी लौ जवानी के ।
मिटा देंगे जड़ से तुझे,
क्यों इन्हें उकसाते हो ?••••
वीर-जवान-शहीदों की गाथा,
तन-मन में रमता जाता है ।
अन्याय के विरुद्ध है लड़ना,
जवान यह गीत गाता जाता है ।
यहाँ हर हृदय में देशभक्ति देख,
तुम क्यों अकुलाते हो ?•••••
निर्दोषों का खून बहाकर,
तुम ताकतवर कहलाते हो ।
सामना जब होती है हमसे,
पीठ दिखाकर भाग जाते हो ।
तेरी क्या औकात है,
क्यों हमें समझाते हो ?•••••
मेरी सेना धूल चटाकर,
सरहद पार करा देगी ।
सिर छुपाने जगह न मिलेगी,
खाक में मिला के रख देगी ।
नफरत का बीज बोकर,
आतंकवादी उपजाते हो ।••••••
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,
आपस में सब भाई-भाई ।
अपना मकसद पूरा करने,
मासूमों के सीने में तुमने आग लगाई।
मजहब का नाम देकर,
तुम आपस में लडवाते हो ।•••••
----श्री एस•एन•बी•"साहब"
रायगढ़
छत्तीसगढ़

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